तुझे ईश्क है कौम से कितना, जग जाहिर हो जाने दो,
तुझे रश्क है मुल्क से कितना, जग जाहिर हो जाने दो।
खंजर ले दिलमें ढूंढ रहे, किसमें कितना भगवान बचा,
कि खुद मर के तुम मारोगे, ये जग जाहिर हो जाने दो।
अगर भरोसा खुद पे होता, फ़िर क्यूँ डर छिप जाते हो,
सौदागर नफरत के तुम हो ,जग जाहिर हो जाने दो।
ना तुममे ईमान बचा है, ना कोई इंसान बचा,
जो तुम्हे बचाते मरोगे, ये जग जाहिर हो जाने दो।
पैगम्बर की फिक्र नही है ,अल्लाह का भी जिक्र नहीं,
कि जेहन में शैतान बसा है ,जग जाहिर हो जाने दो।
माना सारे बुरे नहीं हैं , हैं कुछ अच्छे हैं सच्चे भी,
तुम सबपे दाग लगाओगे , ये जग जाहिर हो जाने दो।
अगर रूह जन्नत को जाती , क्या कह मुँह दिखाओगे,
कि थोड़ा सा ईमान बचा है, जग जाहिर हो जाने दो।
यही वक्त जब मंथन का है, राष्ट्र बड़ा कि धर्म बड़ा,
थोड़ा सा तुममें देश बचा है, जग जाहिर हो जाने दो।
No comments:
Post a Comment