Friday, December 8, 2017

सवालात हीं कुछ ऐसे हैं



यहाँ कत्ल नही देखते , देखे जाते इरादे।
कानून की किताबों के , अल्फाज ही कुछ ऐसे हैं ।

बेखौफ घुमती है , कातिल तो मैं भी क्या करुँ ।
अदालत की जुबानी , बयानात ही कुछ ऐसे हैं ।

हर तारीख दर तारीख पे , देते हैं तारीख बस।
इंसाफ के रखवालों के , सौगात हीं कुछ ऐसे हैं ।

हम आह भी भरते है , तो ठोकती है जुरमाना।
इस देश की कानून के , खैरात ही कुछ ऐसे है।

फाइलों पे धुल पड़ी , चाटती हैं दीमक ।
कानून के रखवालों के , तहकीकात ही कुछ ऐसे है।

उछालते हैं शौक से , हर एक के जनाजे को ।
शहर के रखवालों के , जज्बात ही कुछ ऐसे हैं ।

आते हैं फैसले फरियादी की मौत के बाद ।
की फैसलेदारों के , इन्साफ ही कुछ ऐसे हैं ।

फरियाद अपनी लेके , बेनाम अब जाए किधर ।
अल्लाह भी बेजुबां है , सवालात हीं कुछ ऐसे हैं ।



अजय अमिताभ सुमन


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