Friday, February 14, 2025

क्या रखा है जीत हार में

 कितना अंतर बचा हुआ है,

जीत हार के होने में,
जितना उर के हंस पड़ने या,
किंचित इसके रोने में।
कहने को तो बात रही है,
क्या रखा है जीत हार में,
जीवन के बस दो ये पहलू ,
क्या रखा है प्रीत रार में।
हाथों में उग आए सोना ,
तो जो अंतर होता है,
और वही जो उर छा जाए,
इसके फिर से खोने में।

No comments:

Post a Comment

My Blog List

Followers

Total Pageviews