Friday, February 14, 2025

क्या रखा है जीत हार में

उतना हीं अंतर होता है, 

जीत हार के होने में ।

जितना कि अंतर को हँसने, 

या कि इसके रोने में।

कहने को तो बात रही है,

क्या रखा है जीत हार में,

जीवन के बस दो ये पहलू ,

क्या रखा है प्रीत रार में।

मात्र लफ्ज़ हैं दोनों बंधु, 

“हार गए” या “जीत गए”,

पर इन शब्दों के हैं पीछे, 

गूढ़ मंत्र हैं  गढ़े हुए।

जीत अगर छू ले तन को,

पर मन फिर भी रीता हो,

तो समझो कुछ  छूटा है,

सपन अधूरा बीता हो।

और अगर मन हर्षित होले, 

चेहरे पे छाई मुस्कान, 

वो हार के भी किंचित हीं, 

कहलाता हारा इंसान।

जो अंतर अक्सर होता है, 

मन के पाने खोने में।

मात्र वो हीं अंतर होता है, 

जीत हार के होने में ।

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