कितना अंतर बचा हुआ है,
जीत हार के होने में,
जितना उर के हंस पड़ने या,
जितना उर के हंस पड़ने या,
किंचित इसके रोने में।
कहने को तो बात रही है,
कहने को तो बात रही है,
क्या रखा है जीत हार में,
जीवन के बस दो ये पहलू ,
जीवन के बस दो ये पहलू ,
क्या रखा है प्रीत रार में।
हाथों में उग आए सोना ,
हाथों में उग आए सोना ,
तो जो अंतर होता है,
और वही जो उर छा जाए,
और वही जो उर छा जाए,
इसके फिर से खोने में।
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