आग तो है कम पर लकड़ कुछ ज्यादा ,
अकल पर पड़ी है मकड़ कुछ ज्यादा।दरिया के राही ओ ये भी तो देख लो,
कि पानी तो कम है मगर मगड़ कुछ ज्यादा।
लड़ने का शौक है तो लड़ लो तुम शौक से,
सामने है खेल में जो पकड़ कुछ ज्यादा।
भिड़ने का कायदा है कुछ तो हो फायदा,
ये क्या बिन बात के यूँ झगड़ कुछ ज्यादा।
गिर कर मैदान में जो इतने से खुश हो कि,
चोट लगी कम भले हीं रगड़ कुछ ज्यादा।
फैसले की घड़ी है, एक डगर सोच लो,
चौराहे पे बैठे ना कर अगर मगर ज्यादा।
कि कहते हैं लोग जो तो इसमें गलत क्या,
उम्र बढ़ी बुद्धि पर जकड़ है कुछ ज्यादा।
वो हँस रहा यूँ हीं नहीं बाजी सब हारकर,
बाहर का नवाब दिल का फकड़ कुछ ज्यादा।
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