अपनी नयनों के पट खोल, झब्बर बकरा बोले बोल।
खुल गयी डेमोक्रेसी की पोल,चुतिया नेता जनता बकलोल।डेमोक्रसी की यही पहचान ,जाने जनता ये नादान,
लाउडस्पीकर पर हो आजान,जोर शोर से ईश्वर गान।
कहीं थूक सकती है वो,कहीं मूत सकती है वो।
बम बम डम डम भांग चढ़ा ले, धूम धड़ाम कर टांग उठा ले।
लाइन तोड़ कर भाग ले कोई, कहीं भी मर्जी पाद ले कोई।
महंगाई की मार है भारी, गधी जनता पीसे बेचारी।
दूध दही पर आफत भारी, नर को आपद शामत नारी।
भले राशन की हो लाचारी, निज जाति सरकार हो भारी।
जनता की परिभाषा गोल, अपनी नयनों के पट खोल।
झब्बर बकरा बोले बोल खुल गयी डेमोक्रेसी की पोल।
साला सिस्टम में है झोल, चुतिया नेता जनता बकलोल। ।
गाँधी नेहरू या सावरकर, जिन्ना, मोदी या अंबेडकर।
सबके चेहरे, अलग-अलग पर खेल वही पुराना काम।
छद्म प्रेम ना है सम्मान , इन सबसे निज चले दुकान।
जति धर्म की हीं पहचान, चूतियों कैसे देश महान?
नेता की बातें क्या साला, बैठे बैठे चले घोटाला।
झूठे मुद्दे उठा उठा के, जनता के हजम निवाले।
संसद में हंगामा करते, बिना बात के नेता साले।
झूठे सपने दिखा दिखा के, हम अपने हैं जता जता के।
बस सर नापे मापे नेता, जनता के सर जापे नेता।
हाथी बगुला कुत्ते गधेे ,सबको एक ही माने नेता।
नम्बर का हीं यहाँ है मोल, अपनी नयनों के पट खोल।
झब्बर बकरा बोले बोल,खुल गयी डेमोक्रेसी की पोल।
सिस्टम हीं सारा ढकलोल, चुतिया नेता जनता बकलोल।
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