न्याय की
रक्षा करने वालों का देखो यह काम रे।
सत्यनिष्ठ
सज्जन को भी कैसे करता हैरान रे ।
परोपकार के
लिए हमेशा जिसने सब कुछ खोया रे ।
भाई के मरने
पर जो है तड़प-तड़प कर
रोया रे ॥
जरा नहीं
पिघला इस पर पूजीवाला हैवान रे।
सत्यनिष्ठ
सज्जन को भी कैसे करता हैरान रे ।
मौज उड़ाते
इस दुनियाँ में, जो जग को
लूटते रहते।
रात-दिन श्रम करनेवालों को नित दिन
चूसते रहते ॥
उनके कारण
तड़प-तड़प कर यों
जीते इन्सान रे।
सत्यनिष्ठ
सज्जन को भी कैसे करता हैरान रे ।
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