Monday, August 26, 2024

मरघटवासी

 मरघटवासी 


ओ मरघट के मूल निवासी,भोले भाले शिव कैलाशी।

यदा कदा मन आकुल व्याकुल,जग जाता अंतर सन्यासी। 

जब जग बन्धन जुड़ जाते हैं,भाव सागर को मुड़ जाते हैं।

इस भव में यम के जब दर्शन,मन इक्छुक होता वनवासी।

मन ईक्षण है चाह तुम्हारा,चेतन प्यासा छांह तुम्हारा।

ईधर उधर प्यासा बन फिरता,कभी मथुरा कभी काशी ।

ओ मरघट के मूल निवासी,भोले भाले शिव कैलाशी।


अजय अमिताभ सुमन

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