Saturday, June 11, 2022

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-38

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कौरव सेना को एक विशाल बरगद सदृश्य रक्षण प्रदान करने वाले गुरु द्रोणाचार्य का जब छल से वध कर दिया गया तब कौरवों की सेना में निराशा का भाव छा गया। कौरव पक्ष के महारथियों के पाँव रण क्षेत्र से उखड़ चले। उस क्षण किसी भी महारथी में युद्ध के मैदान में टिके रहने की क्षमता नहीं रह गई थी । शल्य, कृतवर्मा, कृपाचार्य, शकुनि और स्वयं दुर्योधन आदि भी भयग्रस्त हो युद्ध भूमि छोड़कर भाग खड़े हुए। सबसे आश्चर्य की बात तो ये थी कि महारथी कर्ण भी युद्ध का मैदान छोड़ कर भाग खड़ा हुआ।
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धरा   पे   होकर   धारा शायी 
गिर पड़ता जब  पीपल  गाँव,
जीव  जंतु  हो  जाते ओझल 
तज  के इसके  शीतल छाँव।
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जिस तारिणी के बल पे केवट
जलधि   से   भी   लड़ता   है,
अगर  अधर में छिद  पड़े  हों 
कब  नौ चालक   अड़ता  है?
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जिस योद्धक के शौर्य  सहारे
कौरव   दल  बल   पाता  था,
साहस का वो स्रोत तिरोहित
जिससे   सम्बल  आता  था।
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कौरव  सारे  हुए थे  विस्मित 
ना  कुछ क्षण को सोच सके,
कर्म  असंभव  फलित  हुआ 
मन कंपन  निःसंकोच  फले। 
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रथियों के सं  युद्ध त्याग  कर 
भाग    चला    गंधार     पति,
शकुनि का तन कंपित भय से 
आतुर   होता    चला   अति। 
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वीर  शल्य  के  उर  में   छाई 
सघन भय और गहन निराशा,
सूर्य पुत्र  भी  भाग  चला  था 
त्याग पराक्रम धीरज  आशा।
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द्रोण के सहचर  कृपाचार्य के 
समर  क्षेत्र  ना   टिकते  पाँव,
हो  रहा   पलायन   सेना  का 
ना दिख पाता था  कोई ठाँव।
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अश्व   समर    संतप्त    हुए  
अभितप्त हो चले रण  हाथी,
कौरव के प्रतिकूल बह चली 
रण  डाकिनी ह्रदय  प्रमाथी।
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अजय अमिताभ सुमन
सर्वाधिकार सुरक्षित 

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