ना ईश बुद्ध सुकरातों से,मानवता का उद्धार हुआ,
नव जागरण फलित हुआ ,ना कोई जीर्णोंद्धार हुआ।
क्यों भ्रांति बनाये बैठे हो,खुद अवगुणों को पहचानों,
पर आलम्बन ना है श्रेयकर,निज संकल्पों को हीं मानो।
रत्नाकर के मुनि बनने से,बेहतर कोई और प्रमाण नहीं,
एक रोध का टिक जाना हीं,विच्छेदित अवधान नहीं,
एक फूल का मिट जाना हीं,उपवन का अवसान नहीं।
शिशु का चलना गिरना पड़ना,है सृष्टि के नियमानुसार,
बिना गिरे धावक बन जाये,बात न कोई करे स्वीकार।
जीवन में गिर गिर कर हीं,कोई नर सीख पाता है ज्ञान,
मात्र जीत जो करे सुनिश्चित,नहीं कोई ऐसा विज्ञान।
हाय सफलता रटते रहने,में कोई गुण गान नहीं,
एक रोध का टिक जाना हीं,विच्छेदित अवधान नहीं,
एक फूल का मिट जाना हीं,उपवन का अवसान नहीं।
बुद्धि प्रखर हो बात श्रेयकर,पर दिल के दरवाजे खोल,
ज्ञान बहुत पर हृदय शुष्क है,मुख से तो दो मीठे बोल।
अहम भाव का खुद में जगना,है कोई वरदान नहीं,
औरों को अपमानित करने,से निंदित कोई काम नहीं।
याद रहे ना इंसान बनते,और बनते भगवान नहीं,
एक रोध का टिक जाना हीं,विच्छेदित अवधान नहीं,
एक फूल का मिट जाना हीं,उपवन का अवसान नहीं।
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