Thursday, December 6, 2018

मर्सिडीज बेंज वाला गरीब

राजेश दिल्ली में एक वकील के पास ड्राईवर की नौकरी करता था  रोज सुबह समय से साहब के पास पहुंचकर उनकी  मर्सिडीज बेंज की सफाई करता और साहब जहाँ कहते ,उनको ले जाता अपने काम में पूरी तरह ईमानदार था क्या ठंडी , क्या बरसात , क्या धुप , क्या गर्मी  बिल्कुल सुबह आठ बजे पहुँच जाता और गाड़ी को चमका देता  

राजेश की ईमानदारी और कर्मठता उसके चरित्र का हिस्सा था इधर आठ बजे और उधर राजेश हाजिर कई बार तो साहब भी अपनी घड़ी का टाइम राजेश के आने पर आठ सेट कर लेते थे कई बार तो ऐसा लगता कड़ी मेहनत, अनुशासन और राजेश पर्यायवाची शब्द हैं कुल मिला कर यही जमा पुंजी उसके पिता ने उसको दिया था साहब भी उसके इस गुण के कायल थे

दिसम्बर का महीना था पापी पेट का सवाल था रोजाना राजेश को सुबह सुबह निकलना पड़ता सुबह सुबह आने के कारण उसको ठण्ड लग गयी उपर से बर्फ सी ठंडी पानी से गाड़ी की सफाई ने रही सही कसर पुरी कर दी पिछले पाँच दिनों से बीमार था पांच दिनों तक दवाई लेने और घर पर आराम करने के बाद वो स्वस्थ हो गया ठीक होने के बात ड्यूटी ज्वाइन कर ली  फिर वो ही सुबह आना फिर वो ही बर्फ जैसे ठंडे पानी से साहब के मर्सिडीज बेंज की धुलाई ठंडी का असर उसके शरीर पर दिखता था , साहब की गाड़ी पर नहीं बिल्कुल चमकाकर रखा था बेंज को

महिना गुजर गया साहब से पगार लेने का वक्त आया साहब ने बताया कि ओवर टाइम मिलाकर उसके 9122 रूपये बनते है राजेश ने कहा , साहब मेरे इससे तो ज्यादा पैसे बनते हैं साहब ने जवाब दिया  तुम पिछले महीने पाँच दिन बीमार थे तुम्हारे बदले किसी और को ड्राइवरी के लिए 5 दिनों के तक रखना पड़ा उसके पैसे कौन भरेगा. वो तो तुम्हारे हीं पगार से काटेंगे न  

मरता क्या ना करता ? उसने चुप चाप स्वीकार कर लिया साहब ने उसे 9200 रूपये देते हुए राजेश से पूछा,  तुम्हारे पास 22 रूपये खुल्ले है क्या? राजेश ने कहा खुल्ले नहीं हैं साहब ने कहा , ठीक है , सौ रूपये लौटा दो बाकि 22 रूपये अगले महीने दे दूंगा राजेश ने कहा , साहब बीमारी में पैसे खर्च हो गये बाकि पैसे भी दे देते तो अच्छा था साहब ने कहा , अरे भाई एक तुम हीं तो नहीं हो मेरे पास  तुमको दे दूंगा , तो बाकि सारे लोग भी मुंह उठाकर पहुँच जायेंगे राजेश के घर पे बीबी, माँ , बीमार बाप और दो बच्चे थे पुरे परिवार की जिम्मेदारी राजेश के कन्धों पे थी मन मसोसकर 9100 रूपये लेकर लौट पड़ा

मेट्रो का किराया भी काफी बढ़ गया था मेट्रो स्टेशन से उतरकर वो आगे को चल पड़ा तक़रीबन २ किलोमीटर आगे चौराहे से उसके घर के लिए रिक्शा मिलता था पैसे बचाने के लिए मेट्रो से चौराहे तक वो पैदल हीं चल पड़ाउसका घर चौराहे से तकरीबन चार किलोमीटर की दुरी पे था उसे चौराहे से रिक्शा करना पड़ता था किराया 10 रूपया होता था रिक्शा वाले का रोज की तरह उस दिन भी चौराहे तक आकर उसने एक रिक्शा लिया और घर की तरफ चल पड़ा रिक्शे से उतरकर उसने रिक्शेवाले को 100 रूपये पकड़ा दिएरिक्शेवाले के पास खुल्ले नहीं थे उसने आस पास की दुकानों से खुल्ले कराने की कोशिश कीपान वाले के पास गया , मूंगफली वाले के पास गया ,ठेले वाले के पास गया पर सौ के नोट देखकर सबने हाथ खड़े कर दिए खुल्ला नहीं हो  पाया आखिर में रिक्शा वाले ने वो सौ रूपये  राजेश को लौटा दिए  राजेश ने उसका मोबाइल नंबर माँगा ताकि वो बाद में उसके दस रूपये लौटा सके पर रिक्शेवाले ने मना कर दिया रिक्शेवाले ने कहा , भाई कभी न कभी तो मिल हीं जाओगे तुम हीं याद रखनाकभी मिलोगे तो पैसे लौटा देना। फिर उस भयंकर सर्दी में अपनी गमछी से चेहरे पे आये पसीने को पोंछते हुए चला गया

राजेश को अपने मालिक की बातें  याद आ रही थी साहब बोल रहे थे मेरा मकान , मेरी मर्सिडीज बेंज सब तो यहीं है तुम्हारे 22  रूपये लेकर कहाँ जाऊंगा? तुम्हारे 22 रूपये बचाने के लिए अपने घर और अपने  मर्सिडीज बेंज को थोड़े हीं न बेच दूंगाये  22  रूपये अगले महीने की सेलरी में एडजस्ट कर दूंगा   

राजेश के जेहन में ये बात घुमने लगी एक तो ये रिक्शा वाला था जिसने खुल्ले नहीं मिलने पे अपना 10 रुपया छोड़ दिया और एक उसके साहब थे जिन्होंने खुल्ले नहीं मिलने पे उसके 22  रूपये रख लिए , अगले महीने देने के लिए  एक सबक  राजेश को समझ आ गयी। मर्सिडीज बेंज पाने के लिए दिल में साहब की तरह गरीबी को बचाए  रखना बहुत जरूरी है। ज्यादा बड़ा दिल रख कर क्या बन लोगे, महज एक रिक्शे वाला।




अजय अमिताभ सुमन:सर्वाधिकार सुरक्षित 

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