Friday, February 2, 2018

मैंने देखा था एक सपना


मैंने देखा था एक सपना , कहना चाहूँ तुम जरा सुनना।
सपने में देखी एक दादी, दिखती थी बड़ी सीदी सादी।
उस दादी के अजब हिसाब, बंद पड़ी थी एक किताब।
देख के  दादी  पेड़ा  लडडू, घूम गई जैसे कोई लटटू

तब कहूँ क्या हुआ जनाब, खुल गयी वो बन्द किताब।
आया फिर एक बड़ा भूचाल ,दादी का मुंह हुआ विशाल।
बैठी सुरसा जीभ निकाले, खोल के अपने मुख के ताले।
बनी  हुई थी एक पहाड़, अहिरावण सी थी वो दहाड़।

लोग समोसा लाते भर कर,ट्रक भी लाते और हेलीकाप्टर।
डाले मुख में पुआ  पूूड़ी, पर दादी की क्षुुुधा अधूरी।
एक बार मे खाती ऐसे, मूषक हजम हो सर्पमुख जैसे।
उस भुखिया की गजब  दहाड़, जीभ निकाले मुख को फाड़।

ज्यों प्रज्वलित दिनकर चंड, दादी की थी क्षुधा प्रचंड।
छोले हेतु लगती दौड़, खाती कहती थोड़ा और।
सच मे दिखती थी विकराल,बहुत बड़ा सा हुआ बवाल।
कि डर के मारे टूटा सपना,कहना चाहूँ तुम जरा सुनना।


अजय अमिताभ सुमन: सर्वाधिकार सुरक्षित




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