एक मुर्गा सोचा सीना तान,
अब न कभी होगा बिहान,
जो मैं ना बोलूंंगा कुकडु कु,
हा हा ही ही हू हू हू।
पर मुर्गा ये सोच न सका,
सपने सच होते कहाँ भला,
बिन बोले ही हुआ बिहान,
मुर्गा ना बोला फिर कुकडु कु,
हा हा ही ही हू हू हू।
टूटा मुर्गे का फिर अभिमान,
सपना टूटा और हुआ ये ज्ञान,
कि बिन बोले भी हुआ बिहान,
अब रोज बोलूंगा कुकडु कु,
हा हा ही ही हू हू हू।
अजय अमिताभ सुमन
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