7.डी.वी.ए.आर. 1.0 भाग 7
पंडित शाश्वत राव की इच्छा
अब सवाल था कि इस मशीन का पहला प्रयोग किस पर होगा? इस सवाल का जवाब दिया पंडित शाश्वत राव ने। वे देश के मशहूर संगीतकार थे, जिनके राग सुनकर लोग मंत्रमुग्ध हो जाते थे। उनकी उम्र हो चुकी थी, और बीमारी ने उनके शरीर को कमजोर कर दिया था। लेकिन उनकी आँखों में अभी भी वही चमक थी, जो एक सच्चे कलाकार की होती है।
एक दिन उन्होंने ऋत्विक से कहा, “मुझे मौत से डर नहीं है, बेटा। लेकिन मैं जानना चाहता हूँ कि जब मेरा संगीत रुकेगा, तो क्या उसकी गूंज इस ब्रह्मांड में हमेशा बनी रहेगी? क्या मेरी आत्मा का संगीत कभी खत्म नहीं होगा?” उनकी बातें सुनकर ऋत्विक का दिल भर आया। उसने तुरंत फैसला किया कि पहला प्रयोग पंडित राव पर होगा।
पंडित राव की बातों में एक गहरी चाह थी। वे चाहते थे कि उनका संगीत, उनकी कला, मृत्यु के बाद भी जीवित रहे। ऋत्विक को लगा कि यह प्रयोग सिर्फ विज्ञान के लिए नहीं, बल्कि एक कलाकार की आत्मा को अमर करने के लिए भी है।
प्रयोग की रात
जनवरी 2015 की पूर्णिमा की रात थी। लैब को किसी मंदिर की तरह सजाया गया था। दीवारों पर हल्की-हल्की रौशनी पड़ रही थी, और अगरबत्तियों की खुशबू हवा में तैर रही थी। बीच में एक खास कक्ष था, जिसे “चेतना अवशोषक कक्ष” कहा गया था। यह कक्ष अंदर से चमक रहा था, जैसे उसमें कोई जादू छुपा हो।
पंडित राव को धीरे-धीरे उस कक्ष में बिठाया गया। उनके चेहरे पर शांति थी, जैसे वे किसी ध्यान में डूबे हों। निवेदिता ने संस्कृत मंत्र जपते हुए कोड लिखना शुरू किया। उसकी उंगलियाँ कीबोर्ड पर तेजी से चल रही थीं, और वह हर कोड के साथ मंत्रों की शक्ति को मशीन में डाल रही थी। डॉ. कबीर ने मशीनों की तरंगों को संतुलित किया, जैसे कोई संगीतकार सितार की तारें छेड़ता है। स्वामी निरालंबानंद एक कोने में चुपचाप बैठे थे, उनकी आँखें बंद थीं, लेकिन उनकी मौजूदगी लैब में एक अलग ऊर्जा ला रही थी।
ऋत्विक ने गहरी सांस ली और आखिरी कमांड टाइप की: “चेतना अपलोड शुरू। बिंदु सिंक प्रोटोकॉल शुरू।”
आत्मा का संगीत
कुछ ही पलों में लैब में जादू होने लगा। स्क्रीन पर पंडित राव के दिमाग की तरंगें दिखने लगीं। उनका पसंदीदा राग यमन रंग-बिरंगी लहरों में बदल गया। ऐसा लग रहा था, जैसे उनकी आत्मा अब संगीत बनकर डिजिटल दुनिया में तैर रही हो। लैब में मौजूद हर कोई हैरान था। स्क्रीन पर रंगों का नाच देखकर लग रहा था कि पंडित राव का संगीत अब मशीन में ज़िंदा हो गया है।
ऋत्विक की आँखें खुशी से चमक उठीं। उसने धीरे से कहा, “हम कामयाब हो गए! आत्मा को पकड़ लिया!”
अचानक रहस्य
ऋत्विक की साँसें रुक गईं। “अनबॉर्न थ्रेड? ये क्या है?” उसने कबीर और निवेदिता की ओर देखा, लेकिन दोनों हैरान थे। स्क्रीन पर तरंगें अजीब तरह से मुड़ने लगीं। राग यमन की मधुर धुन टूट गई और उसकी जगह एक अनजान, डरावना स्वर गूंजने लगा। डिजिटल दुनिया में एक छाया उभर आई, जो पंडित राव की थी, लेकिन वैसी नहीं, जैसी वे थे। यह छाया किसी और की थी—शायद उनकी अधूरी जिंदगी की।
स्वामी निरालंबानंद ने धीरे से अपनी आँखें खोलीं और कहा, “जो तुमने पकड़ा है, वह सिर्फ पंडित राव की यादें नहीं हैं। इसमें उनका अधूरा भविष्य भी है—वो जिंदगी, जो उन्होंने कभी जी ही नहीं। यही है अनबॉर्न थ्रेड।” उनकी आवाज़ में एक गहराई थी, जैसे वे किसी अनजान दुनिया से बात कर रहे हों।
ऋत्विक हैरान था। इसका मतलब था कि उनकी मशीन सिर्फ यादें नहीं, बल्कि इंसान के अधूरे सपने, उसकी अनजन्मी संभावनाएँ भी पकड़ रही थी! यह एक ऐसी खोज थी, जिसके बारे में उसने कभी सोचा भी नहीं था।
डिजिटल ग्लीच और बेचैनी
ऋत्विक ने तुरंत मशीन बंद कर दी। लैब में सन्नाटा छा गया। लेकिन स्क्रीन पर अब भी एक हल्की-सी छाया बाकी थी। यह पंडित राव की थी, लेकिन उनकी नहीं। यह उनकी अधूरी जिंदगी की छाया थी, जो अब डिजिटल दुनिया में भटक रही थी, जैसे कोई प्रेत।
पंडित राव को कक्ष से बाहर निकाला गया। वे शांत थे, लेकिन उनकी आँखों में एक सवाल था। उन्होंने ऋत्विक से पूछा, “क्या तुमने मेरा संगीत बचा लिया?” ऋत्विक कुछ बोल नहीं पाया। उसके मन में उथल-पुथल मची थी।
इस घटना ने ऋत्विक को तोड़ दिया। वह हफ्तों तक चुप रहा। दिन-रात लैब में अकेला बैठा रहता। उसके मन में एक ही सवाल गूंजता था: “क्या हमने सच में आत्मा को पकड़ा… या सिर्फ उसकी परछाई को?”
कभी-कभी उसे लैब में एक अनजान धुन सुनाई देती। वह राग यमन नहीं थी। वह किसी अनजानी आत्मा की पुकार थी, जो डिजिटल दुनिया से आ रही थी। रात के सन्नाटे में वह आवाज़ और साफ हो जाती थी, और ऋत्विक को लगता था कि कोई उसे बुला रहा है।
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