6.डी.वी.ए.आर. 1.0 भाग 6
डी.वी.ए.आर. 1.0 — एक अनोखा प्रयोग और रहस्य की शुरुआत
मुंबई की उस रात में कुछ जादुई था। समुद्र की लहरें धीरे-धीरे तट से टकरा रही थीं, जैसे कोई पुराना गीत गुनगुना रही हों। आसमान में बादल चाँद को कभी छुपाते, तो कभी उसकी चाँदनी को बिखरने देते। चाँद की रोशनी चारों तरफ फैली थी, लेकिन उस रोशनी में एक अजीब-सी बेचैनी थी, मानो कोई अनकहा रहस्य हवा में तैर रहा हो। हल्की ठंडी हवा चल रही थी, और दूर कहीं से मंदिर की घंटियों की आवाज़ आ रही थी, जो रात को और रहस्यमयी बना रही थी।
ऋत्विक भौमिक अपनी लैब की खिड़की के पास खड़ा था। उसकी आँखें समुद्र की गहराई को निहार रही थीं, लेकिन उसका दिमाग कहीं और था। आज की रात उसके लिए बेहद खास थी। वह कई सालों से इस पल का इंतज़ार कर रहा था। उसके दिल में एक सवाल गूंज रहा था, “आज का प्रयोग दुनिया को बदल देगा… या शायद सब कुछ उलट-पुलट कर देगा।” उसकी उंगलियाँ बेचैन थीं, और वह बार-बार अपनी कलाई पर बंधी माँ की दी हुई रुद्राक्ष की माला को छू रहा था।
ऋत्विक का सपना और उसकी जड़ें
ऋत्विक कोई साधारण वैज्ञानिक नहीं था। उसके भीतर दो अलग-अलग धाराएँ बहती थीं। एक थी विज्ञान की दुनिया। उसने अमेरिका की मशहूर यूनिवर्सिटी में दिमाग और नई तकनीकों की पढ़ाई की थी। वह जानता था कि दिमाग कैसे काम करता है, और तकनीक से उसे कैसे समझा जा सकता है। दूसरी थी अध्यात्म की दुनिया, जो उसे अपनी माँ से मिली थी। उसकी माँ एक साधारण गृहिणी थीं, लेकिन उनकी बातों में गहराई थी। वे अक्सर गीता के श्लोक सुनाती थीं और कहती थीं, “बेटा, आत्मा कभी मरती नहीं। वह बस अपना रूप बदल लेती है, जैसे नदी का पानी समुद्र में मिल जाता है।”
माँ की ये बातें ऋत्विक के दिल में गहरे उतर गई थीं। बचपन में जब वह अपनी माँ के साथ गंगा के किनारे बैठता, तो माँ कहतीं, “हर आत्मा एक कहानी है, जो अनंत है।” इन दो दुनियाओं—विज्ञान और अध्यात्म—के मिलन ने ऋत्विक के मन में एक अनोखा सवाल जगा: क्या आत्मा को पकड़ा जा सकता है? क्या मृत्यु के बाद भी इंसान की चेतना को ज़िंदा रखा जा सकता है?
इसी सवाल ने डी.वी.ए.आर. को जन्म दिया। यह एक ऐसी मशीन थी, जो इंसान के दिमाग और आत्मा को डिजिटल दुनिया में ले जा सकती थी। इसका पूरा नाम था—डिजिटल वर्चुअल एस्ट्रल रियलिटी। ऋत्विक का सपना था कि इस मशीन से वह आत्मा की गहराई को समझ लेगा और शायद उसे हमेशा के लिए बचा लेगा।
ऋत्विक की अनोखी टीम
ऋत्विक ने यह सपना अकेले नहीं देखा था। उसके साथ तीन और लोग थे, और हर एक की अपनी खासियत थी।
पहली थीं निवेदिता। वह एक कोडर थी, लेकिन उसका तरीका बिल्कुल अनोखा था। वह कोड लिखते समय संस्कृत के मंत्रों का जाप करती थी। उसका मानना था कि मंत्रों में एक खास शक्ति होती है। वह कहती, “हर मंत्र एक तरंग है, और हर तरंग को कोड में बदला जा सकता है। अगर हम मंत्रों को सही तरीके से मशीन में डाल दें, तो वह आत्मा को समझ सकती है।” निवेदिता की उंगलियाँ कीबोर्ड पर नाचती थीं, और वह हर कोड को लिखते समय मंत्रों की धुन में खो जाती थी। उसकी लैब में हमेशा अगरबत्ती की खुशबू और हल्का-सा मंत्रों का स्वर गूंजता रहता था।
दूसरे थे डॉ. कबीर खान। वे क्वांटम तकनीक के माहिर थे। उनका मानना था कि इस ब्रह्मांड में हर चीज एक खास तरह की तरंगों से बनी है। वे अक्सर कहते, “आत्मा सिर्फ हमारे दिमाग में नहीं है। वह पूरे ब्रह्मांड में फैली है, जैसे सितार की तारों की धुन। हमें बस उन तरंगों को पकड़ना है।” कबीर की बातें सुनकर लगता था कि वह विज्ञान को किसी कविता की तरह देखते हैं। उनकी लैब में हमेशा कागज़ों पर गणित के नक्शे बिखरे रहते थे, और वह हर बार कुछ नया जोड़ने की कोशिश करते।
तीसरे थे स्वामी निरालंबानंद, एक सन्यासी। उनकी आँखों में ऐसी गहराई थी, जैसे वे समय और दुनिया के परे देख सकते हों। वे कम बोलते थे, लेकिन जब बोलते, तो उनके शब्द दिल को छू जाते थे। एक बार उन्होंने ऋत्विक से कहा, “आत्मा को डेटा मत समझो, बेटा। उसे संगीत समझो। वह न रोशनी है, न शब्द। वह बस एक कंपन है, जो ब्रह्मांड में हमेशा गूंजता रहता है।” स्वामी जी अक्सर लैब के एक कोने में चुपचाप बैठे रहते, लेकिन उनकी मौजूदगी से सबको एक अजीब-सी शांति मिलती थी।
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