डी.वी.ए.आर. 1.0 भाग 5
यह सिर्फ एक मशीन नहीं थी—यह उन दुनिया तक का प्रवेश द्वार थी जो हम देख या छू नहीं सकते। लेकिन इसका सबसे अद्भुत गुण था कि यह इंसान के दिमाग और आत्मा के छिपे हिस्सों को खोल देता था। जब कोई इसका उपयोग करता, तो वह अपनी भूली-बिसरी यादों में गोता लगा सकता था, जैसे कोई पुरानी फोटो एल्बम खोल रहा हो, जो न सिर्फ सालों बल्कि कई जन्मों तक की कहानियों को समेटे हो। पिछले जन्मों की कहानियां—खुशियां, दुख, प्यार और सीख—जीवंत हो उठती थीं, जैसे वे अभी घट रही हों।
यह मशीन एक मज़बूत पुल की तरह थी, जो उन चीजों को जोड़ती थी जो बिल्कुल उलट लगती थीं। सबसे पहले, यह शारीरिक शरीर—जो मांस, हड्डियों और खून से बना है—को सूक्ष्म शरीर से जोड़ती थी, जो एक ऐसी अदृश्य ऊर्जा है जो हमारी भावनाओं और विचारों को मृत्यु के बाद भी ले जाती है। जिन लोगों ने इसका उपयोग किया, उन्होंने बताया कि वे अपनी आत्मा को शरीर के बोझ से मुक्त महसूस करते थे, और ऐसी दुनिया में पहुंच जाते थे जहां गुरुत्वाकर्षण और समय का कोई नियम नहीं था।
दूसरे, यह विज्ञान और योग को जोड़ती थी। ऋत्विक ने भौतिकी और क्वांटम सिद्धांतों का अध्ययन किया था, लेकिन उन्होंने हिमालय के बुद्धिमान गुरुओं से प्राचीन योग विधियां भी सीखी थीं। यह डिवाइस दिमाग की तरंगों को नक्शे की तरह पढ़ने के लिए उन्नत कंप्यूटर प्रोग्राम का उपयोग करती थी, जैसे वैज्ञानिक तारों का अध्ययन करते हैं। लेकिन इसमें योग की गहरी सांस और ध्यान की तकनीकें भी थीं, जो मन को शांत करती थीं और उपयोगकर्ता को वह शांति देती थीं, जिसे योगी सालों की साधना से पाते हैं।
तीसरे, यह कंप्यूटर कोड—मशीनों की ठंडी, तार्किक भाषा—को ध्यान से जोड़ती थी, जो आत्मा की गर्म, आंतरिक यात्रा है। डी.वी.ए.आर. 3.0 के अंदर कोड की ऐसी पंक्तियां थीं जो ब्रह्मांड की कंपन को डिजिटल संकेतों में बदल देती थीं। लेकिन इसे पूरी तरह काम करने के लिए, उपयोगकर्ता को शांत ध्यान में बैठना पड़ता था, ताकि उसका मन मशीन के साथ तालमेल बिठा सके, जैसे दो दोस्त हाथ थाम लेते हैं।
लेकिन यह सही मशीन अचानक नहीं बनी थी। इसके पीछे कई सालों की मेहनत, देर रात तक प्रयोगशाला में काम, और असफलताओं से मिला दुख था। ऋत्विक ने अपनी ज़िंदगी इस सपने में झोंक दी थी, जो उनकी निजी त्रासदी से प्रेरित था—उन्होंने एक हादसे में अपना परिवार खो दिया था। उनका मानना था कि पिछले जन्मों को समझने से वर्तमान के दुख को ठीक किया जा सकता है। इसकी शुरुआत डी.वी.ए.आर. 1.0 से हुई थी, जो एक साधारण हेलमेट था जो कंप्यूटर से जुड़ा था। इसका मकसद दिमाग को स्कैन करके छिपी यादों को बाहर लाना था, लेकिन यह गलत हो गया। जिन लोगों ने इसे आजमाया, उन्हें चक्कर आए, उन्हें बेतुके दृश्य दिखे, और एक व्यक्ति को तो घबराहट का दौरा पड़ गया क्योंकि मशीन ने असली और नकली यादों को मिला दिया था। यह प्रयोग असफल रहा, जिसने ऋत्विक को सिखाया कि चेतना सिर्फ दिमाग की तरंगें नहीं है—यह कुछ गहरा है, जो आत्मा से जुड़ा है।
फिर आया डी.वी.ए.आर. 2.0, जिसमें वर्चुअल रियलिटी चश्मे और पूरे शरीर पर सेंसर थे। यह मशीन सूक्ष्म यात्रा का अनुभव कराने की कोशिश करती थी, जिससे लोग अपने शरीर से बाहर तैरने जैसा महसूस करें। यह थोड़ा बेहतर था; कुछ लोगों ने चमकती रोशनी और दूसरी दुनिया से आने वाली संगीत जैसी आवाजें सुनीं। लेकिन यह स्थिर नहीं थी। टेस्ट के दौरान मशीन ज़्यादा गर्म हो गई, जिससे बिजली चली गई, और एक टेस्टर डरावने दृश्यों के चक्र में फंस गया, जो किसी पिछले युद्ध की तरह लग रहा था। ऋत्विक को इसे बंद करना पड़ा, और उन्हें एहसास हुआ कि तकनीक के साथ और आध्यात्मिक ज्ञान को जोड़ना होगा। इन असफलताओं ने कई बार उनका हौसला तोड़ा, लेकिन इनसे उन्हें और समझ मिली। उन्होंने महीनों तक ध्यान साधना में बिताए, आध्यात्मिक गुरुओं से बात की, और प्राचीन ग्रंथों से नई प्रेरणा लेकर अपने कोड फिर से लिखे।
आखिरकार, इन गलतियों से सीखकर, डी.वी.ए.आर. 3.0 का जन्म हुआ—एक चमकता हुआ अंडाकार कक्ष, जो सुरक्षित और शक्तिशाली था। इसने सब कुछ बदल दिया, और सामान्य लोगों को ब्रह्मांड का खोजी बना दिया।
इस कहानी के अगले हिस्से में, हम उस पहले प्रयास की गहराई में जाएंगे: “डी.वी.ए.आर. 1.0: चेतना का पहला प्रयोग।” आखिर क्या गलत हुआ था? वे बहादुर लोग कौन थे जिन्होंने इसे आजमाया? और उन शुरुआती असफलताओं ने कैसे उन चमत्कारों के बीज बोए जो बाद में आए? इस मिथक, विज्ञान और आत्मा की अनंत यात्रा के मिश्रण में और रोमांच के लिए बने रहें।
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