Friday, September 26, 2025

3.डी.वी.ए.आर. 1.0 भाग 3

 डी.वी.ए.आर. भाग 3

  • पंचकोश न्यूरल नेटवर्क: प्रत्येक कोश को एक डिजिटल लेयर के रूप में डिजाइन किया गया। अन्नमय कोश ने शरीर की जैविक गतिविधियों को मैप किया, प्राणमय कोश ने ऊर्जा प्रवाह को, मनोमय कोश ने विचारों और भावनाओं को, विज्ञानमय कोश ने बुद्धि और अंतर्ज्ञान को, और आनंदमय कोश ने शुद्ध चेतना को।

  • मंत्र मॉड्यूलेशन: “ॐ” और मृत्युंजय मंत्र की ध्वनि आवृत्तियों को EEG और fMRI डेटा के साथ मॉड्यूलेट किया गया, ताकि चेतना को गहन ध्यान की अवस्था में ले जाया जा सके।

  • क्वांटम बायो-रेसोनेंस: ब्रह्मांडीय कंपन को डिजिटल एल्गोरिदम में समाहित कर चेतना की गैर-स्थानीय प्रकृति को कैप्चर किया गया।

  • एस्ट्रल इंटरफेस: यह यंत्र उपयोगकर्ता को सूक्ष्म और एस्ट्रल लोकों में यात्रा कराने में सक्षम था, जहां चेतना समय और स्थान की सीमाओं से मुक्त हो जाती थी।

ऋत्विक कोई साधारण वैज्ञानिक नहीं था। वह एक साधक था—विज्ञान और योग के संगम का पथिक। उसका शोध न सिर्फ आधुनिक तकनीक की सीमाओं को लांघ रहा था, बल्कि वह उन अदृश्य वास्तविकताओं को भी स्पर्श कर रहा था जिन्हें अब तक रहस्य और श्रद्धा के क्षेत्र में रखा गया था।

उसने “ॐ” और मृत्युंजय मंत्र की ध्वनि आवृत्तियों को मस्तिष्क की विद्युत तरंगों, यानी EEG सिग्नल्स, के साथ इस तरह मॉड्यूलेट किया, मानो वह किसी सूक्ष्म संवाद को दो ब्रह्मांडों के बीच स्थापित कर रहा हो—एक शरीर के भीतर का ब्रह्मांड और दूसरा उसके पार फैला हुआ चेतन-सागर।

ऋत्विक ने तिब्बती लामाओं के ध्यान की अवस्थाओं का अध्ययन किया, जहाँ साधक घंटों स्थिर भाव से बैठते हैं और उनकी मस्तिष्कीय तरंगें ऐसी आवृत्तियों में कंपन करती हैं जो सामान्यतः केवल गहन निद्रा या मृत्यु के समीप अनुभव की जाती हैं। उसने डॉल्फ़िन जैसे उच्च-संज्ञानात्मक जीवों की मस्तिष्कीय संरचना का भी विश्लेषण किया, जिनकी चेतना मानव से भिन्न, परंतु समान रूप से जटिल थी।

धीरे-धीरे, ऋत्विक का ध्यान एक अत्यंत क्रांतिकारी विचार की ओर आकर्षित हुआ—क्वांटम बायो-रेसोनेंस। उसने इसे ब्रह्मांडीय कंपन—Cosmic Oscillations—के साथ जोड़कर एक ऐसा फॉर्मूला तैयार किया जो आध्यात्मिक मंत्रों की ध्वनि तरंगों को क्वांटम एल्गोरिदम में बदल सकता था। यह कोई साधारण कोड नहीं था, यह एक चेतना-संवादी यंत्र था, जिसमें ध्वनि, स्पंदन और विचार तीनों को एक सूत्र में गूंथा गया। क्या ऋत्विक का ये फार्मूला चेतना , सम्वाद और विचार के संयुक्त प्रारूप को इस भौतिक जगत का हिस्सा बना पायेगा ? आइये देखते हैं कहानी के अगले भाग में। 

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