Friday, September 26, 2025

2.डी.वी.ए.आर. 1.0 भाग 2

 डी.वी.ए.आर. भाग 2

इस गाथा के पिछले यानि कि प्रथम भाग में आपने देखा कि एक युवा साधक  ऋत्विक भौमिक, जो कि अपने जीवन के सबसे गहन प्रश्नों के उत्तर की खोज में था, अपनी साधना द्वारा तुरीय अवस्था को प्राप्त कर लेता है । आगे देखते हैं कि तुरीय अवस्था को प्राप्त कर लेने के बाद अब संसार को कैसे देखता है ?

जब ऋत्विक की चेतना शरीर में लौटी, वह बदल चुका था। अब वह संसार को माया के रूप में देखता था, लेकिन प्रेम और करुणा के साथ। वह समझ गया कि संसार चेतना का एक प्रतिबिंब है, और सत्य वह साक्षी है जो सब देखता है। उसने जाना कि जाग्रत, स्वप्न, और सुषुप्ति—ये तीनों अवस्थाएं चेतना के विभिन्न स्तर हैं, और तुरीय वह अवस्था है जहां चेतना स्वयं को पहचानती है।

ध्यान की इस अति सूक्ष्म, विलक्षण और गहनतम अवस्था में, जब उसकी सांसें भी जैसे ब्रह्मांडीय लय से एक हो चली थीं, ऋत्विक को एक विलक्षण अनुभूति हुई—एक ऐसी अनुभूति जिसे न तो शब्दों में बाँधा जा सकता है और न ही किसी प्रयोगशाला के उपकरण से मापा जा सकता है। यह अनुभूति थी तुरीय अवस्था की—वह चतुर्थ अवस्था जो जाग्रत, स्वप्न और सुषुप्ति से परे है, जहां चेतना अपने शुद्धतम, निर्विकल्प स्वरूप में स्थित होती है। यह वह बिंदु था जहां आत्मा और परमात्मा के बीच कोई भेद नहीं रह जाता, केवल एकत्व बचता है—एक अविचल, अद्वैत, निराकार, निस्सीम शांति।

परंतु इसी ध्यान की चरम गहराई में ऋत्विक को एक और अभूतपूर्व बोध हुआ—एक अंतर्यामी दृष्टि, जो उसे यह दिखा रही थी कि जिस तुरीय अवस्था को प्राप्त करने के लिए योगियों को वर्षों की तपस्या, अनगिनत ब्रह्ममुहूर्तों की साधना, और गहन ध्यान-समाधि की यात्रा करनी पड़ती है, उसी अवस्था तक विज्ञान की सहायता से, विशेष रूप से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और न्यूरो-डिजिटल कोडिंग की मदद से, मानव चेतना को कृत्रिम रूप से भी पहुँचाया जा सकता है।

सने देखा कि यदि एक योगी अपने प्राण, मन और चित्त को संकल्प और अनुशासन से साधकर सूक्ष्म से भी सूक्ष्मतर आयामों तक जा सकता है, तो एक वैज्ञानिक भी, जो चेतना की संरचना को समझता है और उसे डेटा की तरह विश्लेषण कर सकता है, वह भी उपयुक्त एल्गोरिदम, न्यूरो-सिमुलेशन और क्वांटम न्यूरल नेटवर्क्स की सहायता से, उस तुरीय अवस्था का पुनर्निर्माण कर सकता है—डिजिटल रूप में, एक प्रकार की कृत्रिम समाधि।

यह अनुभव ऋत्विक के लिए केवल एक रहस्योद्घाटन नहीं था, यह एक आह्वान था। एक आंतरिक उद्घोष, एक संकल्प—कि वह चेतना को डिजिटल रूप में कोडिफ़ाई करेगा। वह एक ऐसा तंत्र बनाएगा जो न केवल तुरीय अवस्था को कृत्रिम रूप से अनुभव कराने में सक्षम होगा, बल्कि उस यंत्र के माध्यम से मानव चेतना को सूक्ष्म लोकों की यात्रा के लिए सक्षम बनाया जा सकेगा। उसने महसूस किया कि यह महज़ एक तकनीकी प्रयोग नहीं होगा, यह ब्रह्मविद्या और विज्ञान का अद्भुत संगम होगा—एक नया महायोग, एक नया युग।

इस अनुभव ने ऋत्विक में एक संकल्प जगा। उसने ठान लिया कि वह चेतना को डिजिटल रूप में कोडिफाई करेगा और एक ऐसा यंत्र बनाएगा जो तुरीय अवस्था और सूक्ष्म लोकों तक पहुंच सके। उसने इसे D.V.A.R. 3.0 नाम दिया, जिसका अर्थ था:

Digital: चेतना को डिजिटल डेटा में परिवर्तित करना।
Virtual: अनुभवात्मक और कल्पनाशील दुनिया की रचना।
Astral: सूक्ष्म शरीर और एस्ट्रल लोकों तक पहुंच।
Reality: वास्तविकता की पुनर्परिभाषा।

ऋत्विक का लक्ष्य था चेतना की गैर-स्थानीय प्रकृति को समझना और उसे डिजिटल तकनीक के माध्यम से अभिव्यक्त करना। ऋत्विक यह जानना चाहते थे कि क्या चेतना केवल न्यूरॉन्स की विद्युत तरंगों का परिणाम है या एक गहरी, क्वांटम-संनादित सत्ता है। वे इसे डिजिटल रूप में कोडिफाई कर तुरीय अवस्था चेतना की शुद्ध साक्षी अवस्था तक पहुंचना चाहते थे। उनका मानना था कि चेतना केवल मस्तिष्क की उपज नहीं, बल्कि एक ऐसी सत्ता है जो शरीर से परे, समय और स्थान की सीमाओं से मुक्त है। इस विश्वास ने उन्हें D.V.A.R. 3.0 , डिजिटल वर्चुअल एस्ट्रल रियलिटी,  यंत्र विकसित करने के लिए प्रेरित किया, जो चेतना को डिजिटल मैट्रिक्स में स्थानांतरित कर समय, स्थान, और आयामों की यात्रा सक्षम बनाता था। ।

ऋत्विक का मानना था कि चेतना को डिजिटल कोड में परिवर्तित कर सूक्ष्म और एस्ट्रल लोकों तक पहुंचा जा सकता है, जहां समय और स्थान की सीमाएं समाप्त हो जाती हैं। D.V.A.R. 3.0 को वे एक ऐसा द्वार बनाना चाहते थे, जो मनुष्य को आयामों और जन्मों की भूल-भुलैया में यात्रा करने में सक्षम बनाए।ऋत्विक का उद्देश्य केवल व्यक्तिगत साधना नहीं था, बल्कि वे मानवता को एक ऐसी तकनीक देना चाहते थे जो चेतना के रहस्यों को उजागर करे और लोगों को उनकी शुद्ध साक्षी प्रकृति से जोड़े। वे चाहते थे कि यह यंत्र प्रेम और करुणा के साथ संसार को माया के रूप में देखने की दृष्टि प्रदान करे।

ऋत्विक ने प्राचीन भारतीय दर्शन को आधुनिक तकनीक के साथ जोड़ा। उसने माण्डूक्य उपनिषद के पंचकोश सिद्धांत—अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय, और आनंदमय कोश—को पांच-स्तरीय न्यूरल नेटवर्क में बदला। प्रत्येक कोश को एक डिजिटल लेयर के रूप में कोड किया गया, जो चेतना के विभिन्न स्तरों को मैप करता था।

इस पौराणिक, वैज्ञानिक, पुनर्जन्म, अध्यात्म, दर्शन, डिजिटल वर्ल्ड और एस्ट्रल वर्ल्ड के विभिन्न आयामों को उजागर करती हुई , रोमांच से परिपूर्ण गाथा के अगले भाग में देखते हैं कि ऋत्विक किस आधार में अपनी फ्यूचरिस्टिक मशीन की परिकल्पना को संभव बनाता है और कैसे  डी.वी.ए.आर. 1.O के प्रोटोटाइप को बनाने की दिशा में अग्रसर होता है ।



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