साल 2095।
धरती पर तकनीक अपने चरम पर थी, पर इंसान अब भी अकेला था — अपने सवालों में, अपने डर में। इस समय तक मानव मस्तिष्क को पढ़ने, उसकी यादों को स्टोर करने और डिजिटल रूप में सहेजने की तकनीक विकसित हो चुकी थी। इसे "मनचक्र" कहा गया था।
प्रोजेक्ट ब्लैक इसी तकनीक पर आधारित था — एक गुप्त सरकारी अभियान जिसका मकसद था मृत्यु के बाद चेतना को डिजिटल स्पेस में बनाए रखना।
डॉ. सिया रैना, एक प्रतिभाशाली न्यूरो-साइंटिस्ट, इस प्रोजेक्ट की प्रमुख थीं। उनके पति, कैप्टन आरव रैना, एक मिशन के दौरान मारे गए थे। सिया ने उनकी अंतिम चेतना को मनचक्र प्रणाली में अपलोड कर दिया था — उम्मीद थी कि वो कभी ना कभी उनसे दोबारा बात कर पाएँगी।
कुछ महीनों बाद, सिया ने एक चेतन-संवाद सत्र शुरू किया। स्क्रीन पर कैप्टन आरव की डिजिटल छवि प्रकट हुई।
"आरव... क्या तुम सुन सकते हो?""सिया..." स्क्रीन पर हल्की झिलमिलाहट के साथ आवाज आई।
"तुम वहाँ कैसे हो? क्या तुम दर्द महसूस करते हो?"
"नहीं। लेकिन मैं अकेला नहीं हूँ।"
"क्या मतलब?"
आरव की आवाज धीमी हो गई, "यहाँ... और भी हैं। वो... मुझसे बात करते हैं।"
सिया घबरा गई। "कौन हैं वो?"
आरव की आंखें चमक उठीं। "वो कहते हैं... तुम उन्हें भी ला सकती हो।"
"किसे?"
आरव की मुस्कान अब कृत्रिम नहीं लग रही थी, बल्कि कुछ और थी — जैसे किसी और का चेहरा पहन लिया गया हो।
"छाया आ रही है, सिया। अगली बारी तुम्हारी है।"
अचानक स्क्रीन ब्लैक हो गई।
सिस्टम ने खुद को लॉक कर लिया।
सिया की कंप्यूटर स्क्रीन पर एक नया फोल्डर प्रकट हुआ — "प्रोटोकॉल: पुनर्जन्म_01"
फोल्डर खुला नहीं।
बस एक वाक्य उभरा:
"तुमने जो शुरू किया, अब वही तुम्हें पूरा करेगा।"
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