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Monday, September 15, 2025

किस्सा आसान हो जाऊँ

हर सच से मुँह मोड़कर नादान हो जाऊँ, 
इतना भी अच्छा नहीं अंजान हो जाऊँ। 

आईना सच हीं दिखलाए ये ज़रूरी  नहीं,
बुरा हूँ नहीं इतना कि उससे अंजान हो जाऊँ।

हर वार को हँसकर सहना फरिश्तों की है रियाज़त,
पर मैं नही दर्द -ए दामन संग-ए-बेज़बान हो जाऊँ।

गर ज़हर पिलाए कोई तो उसमें भी शिफ़ा है छुपी,
पर उसको तक़दीर समझूँ, ये तो नादान हो जाऊँ

किसी का बुरा न सोचूँ यही मेरी पहचान सही,
पर ज़हर पिलाए कोई तो क्यों शमशान हो जाऊँ।

मना भी लिया करता हूँ जब रूठा हो दिल किसी का,
पर ऐसा नहीं झुक कर गिरा हुआ ईमान हो जाऊँ।

अच्छा हूँ मगर इतना नहीं कि सीख न ले पाऊँ,
बुराई से गुजर भी जाऊँ और इंसान हो जाऊँ।

मेरा फलसफा समझना कोई मुश्किल नहीं जनाब,
पर ऐसा भी नहीं किस्सा बस आसान हो जाऊँ।

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