अच्छा होने का मतलब ये नहीं कि मैं नादान हो जाऊँ,
हर सच से मुँह मोड़कर बस ख़ामोश इंसान हो जाऊँ।
दुनिया के मेले में बुरा भी तो आईना दिखाता है,
मैं इतना भी अच्छा नहीं कि उससे बेख़बर हो जाऊँ।
हर वार को हँसकर सहना भी इक साधना ही है,
पर क्यों हर पीड़ा के आगे मैं पत्थर सा हो जाऊँ।
हर गाँठ अगर टूटे तो जोड़ना ज़रूरी कहाँ,
मैं इतना भी अच्छा नहीं कि हर झूठा बंधन बो जाऊँ।
जो चोट मिले तो समझूँ वही शिक्षक है जीवन का,
मैं इतना भी कमज़ोर नहीं कि सीख बिना खो जाऊँ।
अच्छाई का मतलब ये नहीं कि मैं परछाई बन जाऊँ,
प्रकाश बने रहना ही मेरा धर्म है, और मैं वही हो जाऊँ।
अच्छा होने का मतलब ये नहीं कि मैं कमज़ोर हो जाऊँ,
बुरा सह भी लूँ मगर हर वार पर चुप-चाप न सो जाऊँ।
किसी का बुरा न सोचूँ, यही है मेरी पहचान,
पर ज़हर पिलाए कोई, तो क्योंकर मैं पी जाऊँ।
बुरा मान लूँ तो फिर भी मना भी लिया करता हूँ,
मगर हर किसी के आगे क्यों जाकर मैं झुक जाऊँ।
हर चोट पे हँसकर जीना ये मेरी आदत है,
पर मार ही दे कोई तो कैसे यूँ छोड़ आऊँ।
हर गाँठ को जोड़ना मेरे वश की बात नहीं,
कभी तो बिखरे धागों से इक सबक भी पाऊँ।
अच्छा हूँ ये सच है, मगर इतना भी नहीं कि,
बुराई से गुज़रते हुए कुछ सीख न पाऊँ।
No comments:
Post a Comment