गरीबी का सौंदर्यशास्त्र
(व्यंग्य गीत)
रोटी पर कविता रची, भूख बनी अलंकार।
कवि बोला—"संवेदना", जनता बोली—"भिखार"।१।
फटे कुर्त्ते में मिला, भाषण का गौरव।
"त्याग" शब्द से ढँक गया, पेट का हर शव।२।
ग़रीब की आँखों में, सपनों का संसार।
नींदें छीनीं योजनाएँ, फिर भी खूब प्रचार।३।
खाली हांडी बज रही, संगीत बना ली।
भूख ने फिर ताल दी, नीति थिरकने चली।४।
"अन्न नहीं तो कविता खा", यूँ बोला साहित्य।
पन्नों में इतिहास गढ़ा, मिट्टी रहा व्यर्थ।५।
झोपड़पट्टी के छन्द को, कहते 'ग्रामीण रंग'।
अक्षर-अक्षर बेचते, बनिए बने तरंग।६।
महँगाई की ओट में, भाषण खाए भात।
नेता बोला—"कष्ट है", पर चखा हर स्वाद।७।
गरीबी अब ब्राण्ड है, विज्ञापन की लाज।
धूल चख के हँस रहा, भारत माँ का आज।८।
कबिरा भी चौंक उठे, देख आज का ढंग।
सूत नहीं पर हाथ में, फिर भी चाल में तंग।९।
'विकास' के फुलझड़ियाँ, जलतीं हैं दिनरात।
बच्चे भूखे घूमते, गिनते चाँद-सात।१०।
दाल-रोटी माँगने पर, मिलती सीख महान।
"तपस्या कर—विकास तू, भोजन नहीं प्रधान!"११।
भूख यहाँ अब नीति है, आँकड़ों का खेल।
माइक के मुँह में दबी, जनता की हर बेल।१२।
अब तो कविता रो रही, शर्मिन्दा है छंद।
जब से भूखों के लिए, छपा नहीं एक शब्द।१३।
भूख ने लिक्खी कहानी, आँसुओं की धार में।
गीत गाते हैं जो रोटी की मगर बाज़ार में।१।
छाँव तक बिकती है अब तो सरकारों के दाम,
धूप बिखरी है ग़रीबी की हर इक दीवार में।२।
भूख को कविता बनाया, थाली को मीनार,
झोपड़ी की पीर खोई है नए अख़बार में।३।
नाम ‘विकास’ रखा, पर भूख मरती ही रही,
नीति सोई रह गई आँकड़ों की धार में।४।
हरित क्रांति कहके बोया सिर्फ़ पत्थर का स्वाद,
सच फँसा है अब रिपोर्टों के जाल-जाल में।५।
ढोल बनकर पीठ बजती है गरीबों की सदा,
नेता भाषण दे रहा गोया किसी त्यौहार में।६।
धूप खाते लोग जिनके पाँव में चप्पल नहीं,
उनके हिस्से की दुआ बिकती है दरबार में।७।
‘काव्य’ में भूख को भरते हैं शब्दों के कशिश,
खाली हांडी भी दिखाते आजकल शृंगार में।८।
गरीब हँस के बोला, "चलो अब तो चुनाव है!"
कमर में रस्सियाँ हैं, मगर माथे पे ताव है।१।
पकोड़े बेचता था, मगर अब दे रहा भाषण,
गरीबी से निकलकर बना जो नव अभाव है।२।
पुरानी धोती में भी आ जाता है ऐश्वर्य,
अगर फोटो खिंचवाने लगा कोई नव-नवाब है।३।
कवि बोला—"भूख क्या है?" गरीब बोला—"कला!"
तू लाचार दिखे इतना कि मिले साहित्य भाव है।४।
नेता भी आ गया है, है थाली साथ लाया,
पर उसमें डालडा है और बातें बेहिसाब हैं।५।
"गरीब हूँ, मगर जीता हूँ शान से"—कहा
बगल में रेडी, सिर पे ताज, यही तो असर-ए-ख्वाब है।६।
बच्चा बोला—"पापा! आज रोटी दो जरा",
बाप बोला—"आज 'विजन डॉक्युमेंट' में स्वाद है!"।७।
जो भूख से मरें, वो 'डेटा' बनके जीते हैं,
गरीब अब रिपोर्टों का सबसे बड़ा हिसाब है।८।
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- लिखित: अजय अमिताभ सुमन 'मनगही' शैली में, व्यंग्यात्मक प्रस्तुति
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