Friday, January 3, 2025

मछलियों में घड़ियाल

 गीता-विभूति योग 

श्रीभगवानुवाच

“प्रह्लादश्चास्मि दैत्यानां कालः कलयतामहम्।
मृगाणां च मृगेन्द्रोऽहं वैनतेयश्च पक्षिणाम्।।”

मैं दैत्यों में प्रह्लाद और गणना करने वालों का समय हूँ तथा पशुओं में मृगराज सिंह और पक्षियों में मैं गरुड़ हूँ।

पवन: पवतामस्मि राम: शस्त्रभृतामहम्।
झषाणां मकरश्चास्मि स्रोतसामस्थि जाह्नवी।।
सर्गाणामादिरन्तश्च मध्यं चैवाहमर्जुन।
अध्यात्मविद्या विद्यानां वाद: प्रवदतामहम्।।

और मैं पवित्र करने वालों में वायु और शस्त्रधारियों में राम हूं तथा मछलियों में मगरमच्छ हूं और नदियों में श्री भागीरथी गंगा जाह्नवी हूं।

 पशुओं मैं कृष्ण का मृगराज सिंह और मछलियों में घड़ियाल को चुनना कई सारे सवाल पैदा करता है I कृष्ण मृगराज सिंह को हीं  चुनते है अपनी विभूति को दर्शाने के लिए I  पशुओं में हाथी हैं , डायनासोर हैं, बाघ है , चीता  है , ऊंट है , घोडा है , गाय है , मृग है , कुत्ते हैं , खरगोश है I  पशुओं की हज़ारों प्रजातिओं में कृष्ण का मृगराज सिंह को हीं चुनना सोचने वाली बात है I जब मछलियों में श्रेष्ठतम की बात आती है तो कृष्ण घड़ियाल चुनते है , व्हेल नहीं , डॉलफिन नहीं I अगर कृष्ण ने ये बात कही है तो निश्चित हीं रूप से ये महत्वपूर्ण बात है . आखिर क्या कहना चाहते है कृष्ण . जब पशुओं की बात हो रही है तो कृष्ण गाय को , घोड़े को , हाथी को , जलचर को , पक्षी को अलग श्रेणी में  रख देते है I 

ख्याल में लेने वाली बात ये है कि ये बात भगवान कृष्ण बोल रहें i ये वाक्य निश्चित ही महावाक्य है i  निश्चित ही पूर्ण वाक्य है i परन्तु समझ आने में दुरूह i ये तो कहना अनुचित ही है कि कृष्ण जैसे  व्यक्तित्व को डायनासोर या व्हेल के बारे में जानकारी नहीं होगी i जिन लोगो के सामने कृष्ण बात कर रहें है , उनके समय के ही उदाहरण  देने होंगे जो उस समय के लोगो को ज्ञात हो i  उस समय के लोगो को डायनासोर या व्हेल के बारे में जानकारी नहीं होगी  इसीलिए कृष्ण ने उनका उदाहरण नहीं दिया i 

ध्यान देने योग्य बात ये है कि कृष्ण गाय को , घोड़े को , हाथी को , जलचर को , पक्षी को अलग श्रेणी में  रख देते है I गाय भी पशु है पर उसमे पशुता नहीं है i वो ममतामयी है i हाथी शांत जानवर है इसलिए उसको अलग रखा गया है i  घोडा उपयोगी है इसलिए उसको भी अलग रखा गया है iकृष्ण खूबसूरती का चुनाव नहीं करते इसलिए खरगोश का चुनाव नहीं करते i वफादारी का चुनाव नहीं करते इसलिए कुत्ते को नहीं चुनते है i जलचर और पक्षी अलग प्रजाति के जीव हैं i 

असंख्य पशु है , सबकी अपनी अपनी विशेषताएं है i  चपलता , उपयोगिता , मृदुता , चालाकी , वफादारी पर जब पशुता की बात हो रही है तो ताकत की बात हो रही है , हिंसा की बात हो रही है , वर्चस्व की बात हो रही है i सिंह को पशुओं का राजा कहा जाता है i इसीलिए सिंह को मृगराज सिंह के नाम से सम्बोषित करते हैं i मृगराज सिंह के सम्बोधन में मृग तो एक उदाहरण है i  मृगराज सिंह मतलब पशुओं का राजा सिंह i  

घड़ियाल भी इतना ताकतवर होता है कि हाथी तक पे भारी पड़ता है पानी में i घड़ियाल और हाथी की लड़ाई जग जाहिर है i  पुरानी कथा है कि एक गज को तालाब में जब एक घड़ियाल ने पकड़ लिया तब गज कि प्रार्थना पर भगवान विष्णु को आना पड़ा बचाने के लिए i  इतना ताकतवर होता है घड़ियाल i     

 जब कृष्ण ये कहते हैं कि पशुओं में मृगराज सिंह और मछलियों में घड़ियाल हूँ तो जाहिर सी बात है , पशुता को चुनते है , ताकत तो चुनते है i उस ज़माने में पशुओं में मृगराज सिंह और मछलियों में घड़ियाल हैं सबसे ताकतवर हैं i इसीलिए उनका चुनाव करते हैं i जो सबसे ताकतवर है वहां भी भगवान का वास है , ये कहना चाहते हैं कृष्ण i

एक बात और मृगराज सिंह और घड़ियाल कभी भी अपने बल का दुरूपयोग नहीं करते i सिंह और घड़ियाल तभी हिंसा करते हैं जब भूख लगती हैं i इनकी हिंसा न्यायसंगत हैं i अर्थात भगवान का वास वहां भी है जहाँ सर्वश्रेष्ठ ताकत का का न्यायसंगत उपयोग है i यही कारण है कि कृष्ण चीता या लोमड़ी का चुनाव नहीं करते है i चालाकी या धूर्तता का चुनाव नहीं करते है i 

Wednesday, January 1, 2025

गुरु की सीख: सफलता का मार्ग

गुरु की हर सीख का महत्व उसके गहरे अर्थ में छिपा होता है। प्रथम दृष्टि में वह सीख अटपटी या असंगत लग सकती है, लेकिन समय आने पर शिष्य को एहसास होता है कि वह उसके हित में ही थी। गुरु का उद्देश्य हमेशा शिष्य को सही मार्ग दिखाना और उसकी सफलता सुनिश्चित करना होता है।

महाभारत के युद्ध में एक ऐसी घटना घटी, जो इस बात को प्रमाणित करती है। युद्ध के दौरान, जब कर्ण का रथ का पहिया मिट्टी में फंस गया, तो वह असहाय हो गया। यह समय धर्म और नैतिकता के दृष्टिकोण से कर्ण पर हमला करने के लिए उपयुक्त नहीं था। लेकिन भगवान श्रीकृष्ण, जो अर्जुन के सारथी और गुरु थे, जानते थे कि यह अवसर अर्जुन के लिए निर्णायक था। उन्होंने अर्जुन से तुरंत कर्ण पर वाण चलाने के लिए कहा।

अर्जुन को यह बात समझ नहीं आई। उन्हें यह अनुचित लगा कि बिना अस्त्र-शस्त्र के संघर्ष कर रहे कर्ण पर प्रहार करना धर्म के विरुद्ध है। लेकिन अर्जुन ने श्रीकृष्ण की आज्ञा मानी और कर्ण का वध कर दिया। बाद में, जब युद्ध समाप्त हुआ, तो अर्जुन को एहसास हुआ कि यदि उस समय उन्होंने श्रीकृष्ण की बात नहीं मानी होती, तो कर्ण को हराना असंभव हो जाता।

यह घटना हमें सिखाती है कि गुरु की बात पर विश्वास करना और उनके निर्देशों का पालन करना शिष्य के जीवन में सफलता के द्वार खोल सकता है। गुरु वह मार्गदर्शक हैं जो शिष्य की क्षमताओं को पहचानते हैं और उन्हें सही दिशा में आगे बढ़ाते हैं।

गुरु की कृपा से भगवान की कृपा प्राप्त होती है। भगवान स्वयं हर भक्त के पास नहीं आ सकते, लेकिन गुरु के माध्यम से वे अपनी उपस्थिति का अनुभव कराते हैं। इसलिए, जीवन में जब भी गुरु की कोई बात समझ न आए, तब भी उस पर विश्वास करें और उसे अपनाएं। क्योंकि गुरु के पास वह दृष्टि होती है, जो शिष्य के हित और उसकी सफलता को देख सकती है।

गुरु की सीख को अपनाने वाला शिष्य ही सच्चे अर्थों में जीवन के हर युद्ध में विजयी होता है।

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