Wednesday, January 1, 2025

गुरु की सीख: सफलता का मार्ग

गुरु की हर सीख का महत्व उसके गहरे अर्थ में छिपा होता है। प्रथम दृष्टि में वह सीख अटपटी या असंगत लग सकती है, लेकिन समय आने पर शिष्य को एहसास होता है कि वह उसके हित में ही थी। गुरु का उद्देश्य हमेशा शिष्य को सही मार्ग दिखाना और उसकी सफलता सुनिश्चित करना होता है।

महाभारत के युद्ध में एक ऐसी घटना घटी, जो इस बात को प्रमाणित करती है। युद्ध के दौरान, जब कर्ण का रथ का पहिया मिट्टी में फंस गया, तो वह असहाय हो गया। यह समय धर्म और नैतिकता के दृष्टिकोण से कर्ण पर हमला करने के लिए उपयुक्त नहीं था। लेकिन भगवान श्रीकृष्ण, जो अर्जुन के सारथी और गुरु थे, जानते थे कि यह अवसर अर्जुन के लिए निर्णायक था। उन्होंने अर्जुन से तुरंत कर्ण पर वाण चलाने के लिए कहा।

अर्जुन को यह बात समझ नहीं आई। उन्हें यह अनुचित लगा कि बिना अस्त्र-शस्त्र के संघर्ष कर रहे कर्ण पर प्रहार करना धर्म के विरुद्ध है। लेकिन अर्जुन ने श्रीकृष्ण की आज्ञा मानी और कर्ण का वध कर दिया। बाद में, जब युद्ध समाप्त हुआ, तो अर्जुन को एहसास हुआ कि यदि उस समय उन्होंने श्रीकृष्ण की बात नहीं मानी होती, तो कर्ण को हराना असंभव हो जाता।

यह घटना हमें सिखाती है कि गुरु की बात पर विश्वास करना और उनके निर्देशों का पालन करना शिष्य के जीवन में सफलता के द्वार खोल सकता है। गुरु वह मार्गदर्शक हैं जो शिष्य की क्षमताओं को पहचानते हैं और उन्हें सही दिशा में आगे बढ़ाते हैं।

गुरु की कृपा से भगवान की कृपा प्राप्त होती है। भगवान स्वयं हर भक्त के पास नहीं आ सकते, लेकिन गुरु के माध्यम से वे अपनी उपस्थिति का अनुभव कराते हैं। इसलिए, जीवन में जब भी गुरु की कोई बात समझ न आए, तब भी उस पर विश्वास करें और उसे अपनाएं। क्योंकि गुरु के पास वह दृष्टि होती है, जो शिष्य के हित और उसकी सफलता को देख सकती है।

गुरु की सीख को अपनाने वाला शिष्य ही सच्चे अर्थों में जीवन के हर युद्ध में विजयी होता है।

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