मौन होकर प्राण-तरुवर को धरा पर तुम झुका दो,
धूल बन आँगन सजाना, ये भी साहस क्या है तुममें?
जब हमारे बीच प्रेमाभिव्यक्ति बन कर बह चला हो,
नील अम्बर सा उभर कर, थम सका बस क्या है तुममें?
श्वेत आँचल दे सको तुम देह को अंतिम हमारी,
श्यामशान तक साथ देने का भी वादा क्या है तुममें?
मूर्खता बन कर न रोओ, अश्रु केवल भार होंगे,
मृत वेश में प्रज्ञा ढूँढ़ो, दृष्टि गहरी क्या है तुममें?
गोद में धर शीश रोना, कुछ न कहना, देख लेना,
हँसते रहना बस हमारी पीर सहना क्या है तुममें?
गीत मेरे गा सको तो, स्वर में रच लो मौन मेरा,
चित्र मेरे हाथ रख कर धड़कता क्या है तुममें?
आवाज़ें मेरी फिर भी कान तक आती रहेंगी,
फोन पर इक बार मेरा नाम खोजना क्या है तुममें?
मैं नहीं हूँ, फिर भी मेरे स्पर्श को महसूस कर लो,
मेरे होने का कोई अहसास बाकी क्या है तुममें?
No comments:
Post a Comment