देह ओज से अनल फला आँखों से ज्योति विकट चली,
जल जाते सारे शूर कक्ष में ऐसी द्युति निकट जली।
प्रत्यक्ष हो गए अन्धक तत्क्षण वृशिवंश के सारे वीर,
वसुगण सारे उर उपस्थित ले निज बाहू तरकश तीर।
रिपु भंजक की उष्ण नासिका से उद्भट सी श्वांस चले,
अति कुपित हो अति वेग से माधव मुख अट्टहास फले।
उनमें स्थित थे महादेव ब्रह्मा विष्णु क्षीर सागर भी ,
क्या सलिला क्या जलधि जलधर चंद्रदेव दिवाकर भी।
देदीप्यमान उन हाथों में शारंग शरासन, गदा , शंख ,
चक्र खडग नंदक चमके जैसे विषधर का तीक्ष्ण डंक।
रुद्र प्रचंड थे केशव में, केशव में यक्ष वसु नाग पाल ,
आदित्य अश्विनी इन्द्रदेव और दृष्टित सारे लोकपाल।
एक भुजा में पार्थ उपस्थित दूजे में सुशोभित हलधर ,
भीम ,नकुल,सहदेव,युधिष्ठिर नानादि आयुध गदा धर।
रोम कूप से बिजली कड़के गर्जन करता विष भुजंग,
क्या दुर्योधन में शक्ति थी जो दे सकता हरि को दंड?
परिषद कम्पित थर्रथर्रथर्र नभतक जो कुछ दिखता था ,
अस्त्र वस्त्र या शाश्त्र शस्त्र हो ना केशव से छिपता था।
धूमकेतु भी ग्रह नक्षत्र और सूरज तारे रचते थे,
जल थल सकल चपल अचल भी यदुनन्दन में बसते थे।
अजय अमिताभ सुमन:सर्वाधिकार सुरक्षित
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