जिसे मानते सुख का उपवन और आकांक्षित प्रीत,
वो ही बिछुड़न पे दुख का कारण बन जाता है मीत.
मंगल, मोहन, पावन , शितवन और मधुर श्री राम,
पर उनके वनवास के कारण, दशरथ त्यागे प्राण.
प्रेम मधुरस काम अकांक्षी सज्ज सोलहों श्रृंगार,
पर कोमल अधरों से भी होते कितने तकरार।
दुर्योधन का चिर निमंत्रण द्रौपदी का इनकार,
फिर उसके परिहास से जनित भीषण नर संहार।
मन तो चाहे प्रेम का मधुवन ढूंढे सुख की छाँव,
पर दुख की भी बदली आती छिपती नंगे पाँव.
मछली को ले खीच के लाती है आंटे की चाह.
उसे ज्ञात क्या बनी आखेट वो चली मौत की राह.
माँ सीता के हरण का कारण, वो सोने का लोभ.
मृगनयनी ने जनित किया था विश्वामित्र में क्षोभ.
कैसा ये विधान विधी का कैसा ये संयोग?
कोमल कलियों में छिपे हुए होते काँटों के योग.
अजय अमिताभ सुमन :सर्वाधिकार सुरक्षित
No comments:
Post a Comment