Thursday, November 28, 2024

इन्सान की ये फितरत है अच्छी खराब भी

 इन्सान की ये फितरत है अच्छी खराब भी,

दिल भी है दर्द भी है दाँत भी दिमाग भी ।

दुनिया समझने की रखता भी है चाहत,
खुद की तबियत ना जानता क्या हसरत।
दर ब दर भटकता ना मिटती बेचारगी,
आँखों में ख्वाब और फितरत आवारगी।

छुपता है रातों को चांदनी से आदतन,
कि चाँद तो है ठीक पर रखता है दाग भी।
इन्सान की ये फितरत है अच्छी खराब भी,
दिल भी है दर्द भी है दाँत भी दिमाग भी ।

दिल के जज्बातों को पढ़ना ना मुमकिन,
कहना जो चाहे रखता लफ़्ज़ों में गिन गिन।
सीने में आग है और ख्वाहिश सुकून की,
कहने भी क्या है आदमी के जुनून की।

सुन के हीं सीख ले ये चीज नहीं आदमी,
सब ठोकरों के जिम्मे नसीहतें किताब भी।
इन्सान की ये फितरत है अच्छी खराब भी,
दिल भी है दर्द भी है दाँत भी दिमाग भी ।

चमकने की चाह है जलना पर आदत,
फूल की है इक्छा पर कांटे भी है आफत ।
हर क़दम पे सवाल हर मोड़ पे है उलझन,
सुकून भी मिले क्या जवाबों पर है भरम ।

यूँ हीं नही नहीं लगता कुछ इसके हाथों में,
कि चाहिए भी तो क्या हाथ आफताब भी,
इन्सान की ये फितरत है अच्छी खराब भी,
दिल भी है दर्द भी है दाँत भी दिमाग भी ।

अपनों से झगड़ता गैरों को रगड़ता,
मिले ना कोई गर तो खुद पे हीं बिगड़ता।
लड़ने झगड़ने की किस्मत ये कैसी?
तन्हाई से डरने की फितरत है कैसी?

आदत भी ऐसी कि शौक भी है मदिरा का,
जीने की जिद पर मरने को बेताब भी।
इन्सान की ये फितरत है अच्छी खराब भी,
दिल भी है दर्द भी है दाँत भी दिमाग भी ।

Tuesday, November 26, 2024

हिंदुस्तान भी रखो

जाति , धर्म, मजहब की पहचान  भी रखो,

अल्लाह जेहन में ठीक ,भगवान भी रखो।


एक  बाग़ किसी फूल के बाप का नहीं,

गुलाब उड़हुल ठीक है आम भी रखो।


पर ये क्या बात है  गली , नुक्कड़ एक से,

एक सी पोशाक एक सा मकान भी रखो।


दुनिया ये चीज ठीक है सच से  चलती नहीं,

झूठ है मुकम्मल पर थोड़ा ईमान भी रखो।


खुश हो रहे हो ठीक है  तुम जीत की जश्न में,

औरों की हार का का थोड़ा सा मान भी रखो।
ऐसे  हीं  ना राष्ट्र  कोई थोड़े  ना चलता है,

जेहन में मुल्क अपना हिंदुस्तान भी रखो।


Sunday, November 24, 2024

पकड़ जकड़ रगड़ झगड़ समर

झगड़

रगड़,

जकड़

धड़ पकड़ 

अरि सर

समर

डगर

बन

कहर

बन

लहर

अरि दल

जहर 

तू अड़

तू चढ़

तू बढ़

तू लड़


Left or Right

Day or Night

Darkness or Light

Just War in Sight

Be Ready for Fight


चट्टानसम संकल्प:, दृढं च हृदयं याचते।

हे वीर योद्ध! रणं ते, शोणितं याचते।

अभेद्यं लक्ष्यं तव भेदनं कठोरां परीक्षां प्रकटयति।

कः मार्गः ते? किम् शिक्षायाः फलम्?

तर्हि समरे ख्यातिं प्रार्थयसि, संग्रामः त्वया एव कर्तव्यः।

तर्हि स्वर्गे गन्तुं इच्छसि, मरणं अपि त्वया एव अनिवार्यं।


चट्टान से इरादे,

जिगर सख़्त, 

फौलाद सी बाहें, 

गिद्ध सी निगाहें

सिंह का संबल

गज सा बल

गैंडे सी ढाल

चीते की चाल

युद्ध, और, रक्त, 

अपनो का रक्त

अपनों का वक्त

काँटों का तख्त


और 


निज पे विश्वास

मांगे इतिहास, 


Day or night, the battle may call,

Left or right, stand firm, don't fall.

Through darkness deep or brightness near,

Face the storm, overcome your fear.


देख


रण भेरी आज

करती निनाद

भुज बल से हीं

अब हो संवाद

निज वस्त्र त्याग

अस्त्रों से साज

शस्त्रों से साज

ले उर मे आग

कर सिंह नाद

तू बढ़ ले आज

मत भाग आज 

ना चुप हो आज

ले आग आज

तू जाग आज

गा समर राग


Be ready to fight, stand tall, stay strong,

For justice and truth will carry you along.



अब चल निडर 

बन एक अंधड़

करके हुन्कार

तू कर प्रहार

अरि दल पर वार

भीषण प्रहार

अड़, चढ़, बढ़

ओ निडर लड़ 

जकड़

रगड़

पकड़

समर

अरि पर

बन कहर

गर्दन पकड़

मर्दन कर

धर

चढ़

बढ़

मार या मर

हो जाओ अमर

युद्ध कर

युद्ध कर

हाँ युद्ध कर


समर में नाम चाहिए 

तो लड़ना तुझे हीं होगा, 

अड़ना तुझे हीं होगा, 

झगड़ना तुझे हीं होगा, 

रगड़ना तुझे हीं होगा, 

अगर रखते हो चाह स्वर्ग की, 

तो मरना तुझे हीं होगा, 

मरना तुझे हीं होगा।

Friday, November 8, 2024

गर छोटा हो तुम छोटा

गर छोटा हो तुम छोटा,
गर तुमको कुछ ने रोका।
गर तुमको कुछ ने टोका
ना समझो खुद को खोटा।
जीवन में आगे बढ़ने से,
आखिर किसने तुमको रोका?
नहीं जरूरी हर लघुता का,
एकमात्र हीं भय परिचय हो।
नही जरूरी वृहद काया ,
का लघुता पर केवल जय हो।
ताड़ वृक्ष लंबा होता है,
खंबा सा दृष्टित होता है।
पर इसपे गिद्ध हीं बसता है,
ना फल ना छाया देता है।
गज की महाकाया सी काया,
तन जिराफ ने लंबा पाया।
चीता इन दोनों से छोटा,
पर चीता से हीं भय होता।
छोटी छोटी चीजों में भी,
अतुलित शक्ति सोती रहती।
छोटी छोटी चीजें भय का,
कारण किंचित होती रहती।
शिव जी की आँखे हैं छोटी,
पर इनसे दुनिया हैं डरती।
एक कीटाणु एक विषाणु,
जीवन हारक ये जीवाणु।
सबके सब हैं छोटे होते,
नयनों को दृष्टित ना होते।
फिर भी भय से सब डरते हैं,
जीवन कितनों के हरते हैं।
छोटेपन से क्षय ना होता,
प्रेम प्रतीति लय भी होता।
उज्जवलता का भी कारण ये,
सुंदरता भी मनभावन ये।
माथे की बिंदियाँ भी छोटी,
गालों की डिंपल भी छोटी,
छोटे छोटे तिल भी सोहे,
छोटे नैना भी मन मोहे।
रातों को बरगद के जुगनू,
जगमग करते सारे जुगनू।
चावल के दाने भी छोटे,
पर दुनिया को खाना देते।
सरसों की कलियाँ भी छोटी ,
मटर की वल्लरियाँ छोटी।
छोटा हीं मोती का माला,
छोटा हीं तो कंगन बाला।
बादल की बूँदें भी छोटी,
रिमझिम बारिश हैं कर देतीं।
फूल, फल और कलियाँ पत्ते,
जिनसे सब तरुवर हैं हँसते।
सब के सब छोटे हैं सारे ,
पर सबको लगते हैं प्यारे।
फिर क्यों तुम सारे रोते हो?
छोटेपन पर सुख खोते हो।
बरगद के नभ को छूने से,
तरकुल के ऊँचे होने से,
ना अड़हुल शोक मनाता है,
बरगद पे ना अकुताता है।
ना खुद पे ये शर्माता है,
उतना हीं फूल खिलाता है,
उतना खुद पे इतराता है।
बरगद ऊंचा तो ऊंचा है,
ना अड़हुल समझे नीचा है।
बरगद की अपनी छाया है,
अड़हुल की अपनी माया है।
सबकी अपनी आप जरूरत,
नहीं फर्क कैसी काया है।
छोटा तन तो फिर क्या गम है,
ना होती कोई खुशियाँ कम हैं।
तुम उतना हीं गा सकते हो,
तुम उतना हीं खा सकते हो।
तुम उतना हीं जा सकते हो,
तुम उतना हीं पा सकते हो।
तुम उतने हीं सो सकते हो,
तुम उतने हीं हो सकते हो।
मिट्टी सा तो तन होता है,
छोटा तो बस मन होता है।
मैंने बस इतना जाना है,
मैंने बस इतना माना है।
तन लंबा पर मन छोटा हो,
नियत में गर वो खोटा हो।
ऐसा हीं छोटा होता है,
ऐसा हीं छोटा होता है।
ऐसा हीं खोटा होता है।

न्याय की रक्षा करने वालों का देखो यह काम रे

 

न्याय की रक्षा करने वालों का देखो यह काम रे।

सत्यनिष्ठ सज्जन को भी कैसे करता हैरान रे ।

परोपकार के लिए हमेशा जिसने सब कुछ खोया रे ।

भाई के मरने पर जो है तड़प-तड़प कर रोया रे ॥

जरा नहीं पिघला इस पर पूजीवाला हैवान रे।

सत्यनिष्ठ सज्जन को भी कैसे करता हैरान रे ।

मौज उड़ाते इस दुनियाँ में, जो जग को लूटते रहते।

रात-दिन श्रम करनेवालों को नित दिन चूसते रहते ॥

उनके कारण तड़प-तड़प कर यों जीते इन्सान रे।

सत्यनिष्ठ सज्जन को भी कैसे करता हैरान रे ।

नाश करे देशवा के नाश कइलस

 

नाश करे देशवा के नाश कइलस ।

भाई गंदा केसेटवा विनाश कईलस ।।

झुलनी नथुनिया के गीतवा सुनाके,

लइका लइकिया के पागल बना के ।

सबके जिनिगिया के नाश कइलस । भाई

 

लाज हया पियलस केसेटवा के गाना ,

लंगटे बा नाचत बेशर्मी जमाना।

सोना अइसन देशवा के नाश कइलस । भाई

 

"आशावादी" कहे भाई जिनगी बनाव,

 गंदा केसेटबा ना केहु के सुनावअ।

राम के धरतिया के नाश कइलस । भाई""

 

 

चटुकी भर सेनुरा ला तरसाई

 गीत- - धीया के करेजवा साले ए राम

शेर- बेटी के दिल दूखाई मत दहेज के कारण,

केह के दिल दुखाई मत दहेज के कारण ।

श्री आशावादी के बतिया इ मान लीं,

चटुकी भर सेनुरा ला तरसाई' मत दहेज के कारण ।

 

गीत- चूट्की भर सेनुरा मएनवा

धीया के करेजवा साले ए राम ।

बिलखेली बेटी ए मएनवा

अँखिया से लोरवा झड़ ए राम ।

दिनवा बितावे धीया भूखिया पियसिया,

रतिया बितावे बेटी बाबा आँखि नींदिया।

धरम के देश इ मएनवा

धीया के दरद ना जाने ए राम ।। चुटुकी'

 

फूल लेखाँ बेटी से ना केहूके पिरीतिया,

माँगि के दहेज ऊ बढ़ावेला इज्जतिया ।

बड़का इज्जतिया मएनवा

बेटीके ना दुख तनि बुझे ए राम । चुटुकी'

 

देवी देवता के सब लोग गोहरावेला,

शदिया में शिवजी के गीत सब गावेला ।

देवी के पूजारी ए मएनवा

नोट खातिर बेटियन के जारे ए राम॥ चुटकी'

 

श्री नाथ"आशावादी" बहू के ना प्यार बा,

जाहिल समाज में ना बेटी के उद्धारबा ।

देवता बा उहे ए मएनवा,

 धीया के दरदिया जे बाँटे ए राम ॥ चूटकी

 

दुखवा के वतिया

दुखवा के वतिया, लिखत बानी पतिया में ,

लोरवा गिरेला दिन रतिया सहेलिया।

 

लगन देखि शादी भइल, पोथियो भी झूठ भइल,

धूल में सोहाग मिल गइल रे सहेलि वा।

मइल कुचइल जब, कपड़ा पहीनी तब

लोग कहे हमरा के फूहड़ रे सहेलिया।

 

साफ सुथड़ जब रहीं, लोग हंसे कही-कही,

इत अब मन के बिगड़ लस सहेलिया ।

घर आ बहरवा के, बिगड़ल लोगवा के,  

बुरा बाटे हम पर निगाहवा सहेलिया।

 

दुनिया के रीति नीति, देखि देखि हम सोचीं,

 मन के लगाम टूटि जाई रे सहेलिथा ।

गोतिनी-देयादिनी के, अपना पिया के संगे,

देखि हिया हहरेला हमरो सहेलिया।

 

मन के पियास जब, हमके सतावे तब ,

कइसहूँ इज्जत बचाई रे सहेलिया ।

लाजबा के बतिया हम, लिखीं कइसे पतिया में,

दुनिया के मरमो ना जननी सहेलिवा ।

 

जिनगी के आपन पोल, केतना दीं हम खोल,

घर में ना कुतियो के मोल रे सहेलिया।

गोदंवा में रहिते जे, एकोगो बालकवा त,

मन ओकरे में मन अझुरइतीं सहेलिया।

 

बाकिर गोद बाटे सूनअ, सोची सोची सूखे खून,

जिनगी में खाली बा अन्हारे रे सहेलिया।

कुहुकि कुहुकि चिरई, पिजड़ा में जीय तारी,

ब्याध इ समाज गोलिया मारे रे सहेलिया |

 

पतिया के बात सखी, माई से तू जनि कहिहब,

कह दीहअ बेटी नीके बारी रे सहेलिया।

अखिया के लोरवा त, लेपलस अक्षरवा के ,

धीरज धके टोई टोई पढ़िह सहेलिया ।

 

श्री नाथ आशावादी, लिखत में लोर झड़े,

विधवा के दरद सुनावे रे सहेलिया ।

 


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