इन्सान की ये फितरत है अच्छी खराब भी,
दिल भी है दर्द भी है दाँत भी दिमाग भी ।दुनिया समझने की रखता भी है चाहत,
खुद की तबियत ना जानता क्या हसरत।
दर ब दर भटकता ना मिटती बेचारगी,
आँखों में ख्वाब और फितरत आवारगी।
छुपता है रातों को चांदनी से आदतन,
कि चाँद तो है ठीक पर रखता है दाग भी।
इन्सान की ये फितरत है अच्छी खराब भी,
दिल भी है दर्द भी है दाँत भी दिमाग भी ।
दिल के जज्बातों को पढ़ना ना मुमकिन,
कहना जो चाहे रखता लफ़्ज़ों में गिन गिन।
सीने में आग है और ख्वाहिश सुकून की,
कहने भी क्या है आदमी के जुनून की।
सुन के हीं सीख ले ये चीज नहीं आदमी,
सब ठोकरों के जिम्मे नसीहतें किताब भी।
इन्सान की ये फितरत है अच्छी खराब भी,
दिल भी है दर्द भी है दाँत भी दिमाग भी ।
चमकने की चाह है जलना पर आदत,
फूल की है इक्छा पर कांटे भी है आफत ।
हर क़दम पे सवाल हर मोड़ पे है उलझन,
सुकून भी मिले क्या जवाबों पर है भरम ।
यूँ हीं नही नहीं लगता कुछ इसके हाथों में,
कि चाहिए भी तो क्या हाथ आफताब भी,
इन्सान की ये फितरत है अच्छी खराब भी,
दिल भी है दर्द भी है दाँत भी दिमाग भी ।
अपनों से झगड़ता गैरों को रगड़ता,
मिले ना कोई गर तो खुद पे हीं बिगड़ता।
लड़ने झगड़ने की किस्मत ये कैसी?
तन्हाई से डरने की फितरत है कैसी?
आदत भी ऐसी कि शौक भी है मदिरा का,
जीने की जिद पर मरने को बेताब भी।
इन्सान की ये फितरत है अच्छी खराब भी,
दिल भी है दर्द भी है दाँत भी दिमाग भी ।