Monday, July 21, 2025

सत्य, असत्य का

हिमालय की वादियों में बसा था एक शांत तपोवन। वहाँ एक वृद्ध संन्यासी रहते थे — स्वामी पुरुषोत्तम। वर्षों की साधना और आत्मबोध के बाद वे पूर्ण ज्ञानी हो चुके थे।

उनके शिष्यगण थे अनेक, परंतु उनमें तार्किक और जिद्दी था एक युवक — आर्यन। आधुनिक शिक्षा में निपुण, विज्ञान और दर्शन दोनों का ज्ञाता।

एक दिन जब गुरु ने कहा:"यह संसार एक माया है। जो दिखाई दे रहा है, वह वस्तुतः सत्य नहीं।"

आर्यन ने विनम्र परंतु ठोस तर्क के साथ उत्तर दिया: "गुरुदेव, यदि यह संसार असत्य है, तो यह पत्थर मेरे पाँव को क्यों घायल करता है? यह अग्नि हाथ जलाती क्यों है? यह भूख मेरे भीतर दर्द क्यों लाती है? माया अगर भ्रम है, तो उसका असर इतना वास्तविक क्यों लगता है?"

अगले दिन भोर में गुरु और शिष्य एक पास के कस्बे में पहुँचे। वहाँ एक बड़ा सरकारी अस्पताल था।  वे सीधा ट्रॉमा सेंटर (आपात चिकित्सा विभाग) में पहुँचे। वहाँ एक युवक को स्ट्रेचर पर लाया गया — तेज़ सड़क दुर्घटना का शिकार। रक्त बह रहा था। डॉक्टर उसका ऑपरेशन कर रहे थे।

गुरु ने कहा:"ध्यान से देख, आर्यन। यह शरीर टूटा है। मांस फटा है। देख, यह रक्त बह रहा है। यह तेरा सत्य है, है न?"

आर्यन ने गंभीरता से सिर हिलाया। "हाँ, यह दुखद है, पर वास्तविक है।"

गुरु ने आगे कहा:"अब वहीं बगल के कमरे में चल।"

वे एक ICU में पहुँचे। वहाँ एक महिला लेटी थी — ब्रेन डेड (मस्तिष्क मृत्यु)। उसका हृदय धड़क रहा था, पर EEG (मस्तिष्क तरंग) सीधी रेखा दिखा रही थी। न कोई प्रतिक्रिया, न कोई चेतना। मशीनें साँस ले रही थीं।

गुरु ने पूछा:"क्या यह महिला जीवित है?"

आर्यन बोला:"जैविक रूप से हाँ, पर चेतना नहीं है।"

गुरु ने तीखा प्रश्न किया:"तो शरीर और जीवन में भेद हुआ न? शरीर ज़िंदा है, पर जीवन चला गया। तेरा तर्क यहीं टूटता है — शरीर ही जीवन नहीं। चेतना जब तक है, अनुभव है। चेतना हट गई, सब समाप्त।"

गुरु ने आर्यन को एक और वार्ड में ले गए। वहाँ एक छोटी बच्ची को बेहोशी की हालत में लाया गया था — निम्न रक्त शर्करा के कारण वह कोमा में चली गई थी।

कुछ घंटों बाद डॉक्टरों ने जब IV ग्लूकोज़ दिया, बच्ची धीरे-धीरे होश में आई। उसकी माँ उसे पुकार रही थी। पहले बच्ची कुछ नहीं समझी, फिर उसकी आँखें चमकीं — "माँ!"

गुरु ने धीरे से आर्यन से पूछा: "जब वह कोमा में थी — क्या वह संसार को अनुभव कर रही थी?"

"नहीं।"

"जब वह होश में आई — तो वही माँ, वही कमरा, वही डॉक्टर — फिर से 'वास्तविक' हो गए। क्यों?"

आर्यन ने कहा:"क्योंकि चेतना लौट आई थी।"

गुरु मुस्कराए: "बस यही बात तुझे समझनी है। संसार की 'वास्तविकता' चेतना पर निर्भर है — चेतना के बिना न माँ है, न कष्ट है, न प्रेम है। संसार, परिस्थितियाँ, सब कुछ केवल चेतना में घट रहा है — उसी की सीमा तक यह 'सत्य' है।"

गुरु ने उसे एक मनोचिकित्सक से मिलवाया, जो सिज़ोफ्रेनिया के रोगियों का इलाज करता था। एक युवक कमरे में बैठा था, और कह रहा था —"मुझे लगता है कि मेरे पीछे कोई है... मेरी माँ मुझे ज़हर दे रही है..."

गुरु ने पूछा: "क्या यह युवक झूठ बोल रहा है?"

आर्यन बोला: "नहीं, उसकी अनुभूति झूठ नहीं है, पर वस्तुस्थिति वैसी नहीं है।"

गुरु बोले: "यही माया है — जब अनुभूति हो, पर वस्तुस्थिति न हो। और जान ले — जो तू अभी 'सच' मानता है, वह भी चेतना की ही निर्माणित संरचना है। जैसे वह युवक माया में था, वैसे ही हम सब। फर्क सिर्फ़ यह है कि उसकी माया को विज्ञान 'बीमारी' कहता है, और हमारी माया को 'सामान्य जीवन'। लेकिन दोनों में मूल तत्व एक ही है — ‘अनुभव के सत्य होने का भ्रम’।"

अंत में गुरु उसे शवगृह (mortuary) में ले गए। वहाँ हाल ही में एक वृद्ध व्यक्ति का शव रखा गया था। डॉक्टर ने दिखाया — शरीर गर्म है, पर प्राण नहीं।

गुरु ने कहा: "इस देह ने भी कल तक खाया, सोचा, रोया, हँसा — अब क्या है?" "बस एक शरीर..." "तो, आर्यन — कौन गया?" "प्राण... चेतना..." "तो क्या यही तेरा सत्य था? जो पल भर में चला गया? क्या जो जाता नहीं, वह सत्य नहीं होगा?" आर्यन मौन हो गया। उसकी आंखों में कोई चमत्कार नहीं था — पर उसके भीतर एक ‘गूढ़ शांति’ आ गई थी।

गुरु ने कहा: "माया का अर्थ है — 'जिसे मापा नहीं जा सके' संसार की अनुभूतियाँ तुझे वास्तविक लगती हैं क्योंकि तू चेतन है। पर जो मूल चेतना है — वही अंतिम सत्य है। जब तू उसे पकड़ता है, तब समझ आता है कि संसार सत्य नहीं, केवल संदर्भ है।"

आर्यन सिर झुकाता है। "गुरुदेव, अब मुझे उत्तर मिल गया — शब्दों से नहीं, अनुभवों से।"

गुरु बोले: "अब तेरी तर्क की शक्ति — साधना की ओर मोड़। क्योंकि जिस चेतना को तूने समझा, अब उसे जीना है।"

संसार माया है — इसका अर्थ यह नहीं कि यह 'अस्तित्वहीन' है। इसका अर्थ है — यह ‘अपेक्षिक’ है। यह चेतना के प्रकट होते ही है, और चेतना के लुप्त होते ही मिट जाता है। जो चेतना को जान गया — वही सत्य को जान गया।

No comments:

Post a Comment

My Blog List

Followers

Total Pageviews