Thursday, July 17, 2025

संचित

 जीवन क्या है मानस पट पे

घुमड़ घुमड़ के आते बादल

कभी खुशी के ये उजले बादल
कभी गम के ये काले बादल

कभी भावों से होकर बोझिल
आँखों से बरसते बादल

प्रभु ने सुंदर आकाश दिया
मानस पट पे प्रकाश किया

अहम् स्याही से मानुस ने
बंजारों का विकास किया

ये बंजारे कभी प्रीत सिखाते
अपरिचित को मीत बनाते

कभी मीत बन जाता दुश्मन
कभी दुश्मन को प्रीत सिखाते

प्रभु भावों के रूप अनगिनत
भावों के अनगिनत बादल

इन भावों के पार प्रभु तू
बाधा तेरे ही निर्मित बादल

मेरी धरती पे देना ही है
तो प्रभु ऐसे देना बादल

मानवोचित भावों से वंचित
और प्रभुप्रेम जो संचित

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