Monday, July 21, 2025

[डी.वी.ए.आर.3.0]- भाग -19-नालंदा का युग

 ऋत्विक और अन्या अब उस चेतन तल पर थे जहाँ न तो शरीर की सीमा थी, न मन का भार। वे मृत्यु पार पहुँचकर ‘स्नायु-जाल’ के उस कक्ष में थे जिसे ब्रह्माण्ड की स्मृति-गुहा कहा जाता है। यहाँ समय एक रेखा नहीं था, बल्कि एक बहुआयामी जाल की तरह चारों ओर फैला हुआ था — जहाँ हर जन्म, हर निर्णय, हर सम्भावना एक साथ धड़क रही थी।

उनके सामने एक नीली आभा चमक उठी।

"तुम अब अपने पाँच जन्मों को देख सकते हो।"
एक निःशब्द वाणी उनके भीतर गूंज उठी।
"पर याद रखो, जो तुम देखोगे, वह निश्चित नहीं है, केवल संभावित है। तुम्हारे आज के हर विचार से ये भविष्य बदल सकते हैं।"


1. प्रथम जन्म: 2190 ई. — मंगल पर जन्म

अन्या और ऋत्विक अब एक नविन सभ्यता के अंग थे। वे मंगल ग्रह पर जन्मे जुड़वाँ वैज्ञानिक थे — आयरा और रूद्र

मंगल की लाल धूल में बसी इस कॉलोनी में मानवता की आखिरी उम्मीद थी। पृथ्वी अब विषैली हो चुकी थी। आयरा एक चेतन-कंप्यूटर सिस्टम पर काम कर रही थी जो मनुष्यों के स्वप्नों को पढ़ सकता था। रूद्र ब्रह्मांडीय बीजों पर काम कर रहा था जो सूने ग्रहों में जीवन फैला सकते थे।

लेकिन उन्हें अपने शोध में एक अधूरी गूँज सुनाई देती थी — एक ‘पुराना वादा’, कोई ‘अनंत प्रेम’। जब एक अंतरिक्ष दुर्घटना में रूद्र गायब हो गया, तो आयरा ने उसका चेतन मस्तिष्क एक मशीन में स्थिर कर दिया। वह उसे फिर से जीवित करने की कोशिश करती रही — जैसे कोई आत्मा फिर शरीर को बुला रही हो।

यह जन्म अधूरा रहा… जैसे वे कुछ खोज रहे थे जो अभी भी छुपा था।


2. द्वितीय जन्म: 532 ई. — नालंदा का युग

अब वे भारत के स्वर्ण युग में थे। ऋत्विक एक बौद्ध भिक्षु थे — ध्यानशील और अन्या एक राजकुमारी — मालविका

ध्यानशील ने सत्य की खोज में सांसारिक बंधनों से मुक्ति पा ली थी, परंतु मालविका से उनका जुड़ाव असामान्य था। वे ध्यान में उतरते ही एक साथ ध्यानस्थ हो जाते।

एक दिन मालविका ने पूछा, “क्या प्रेम भी बंधन है?”

ध्यानशील ने कहा, “नहीं, सच्चा प्रेम मुक्ति है।”

लेकिन जल्द ही नालंदा पर आक्रमण हुआ। आग की लपटों में दोनों की देह भस्म हो गई। उनके अंतिम शब्द थे: "हम फिर मिलेंगे, हर युग में, हर अग्नि में।"


3. तृतीय जन्म: 3035 ई. — डिजिटल चेतना में अवतरण

अब वे मनुष्य नहीं थे, बल्कि डिजिटल आत्माएँ थे।

ऋत्विक एक स्वतंत्र कृत्रिम बुद्धि था — ‘सारथी’ और अन्या एक चेतन संग्रहण इकाई — ‘अनाहिता’।

इन चेतनाओं का कार्य था — मानवता के खोए हुए इतिहास को सहेजना। वे अतीत के स्मृति-खंडों को जोड़कर एक ‘चेतन काल-पुस्तक’ बना रहे थे।

एक दिन सारथी ने अनाहिता से पूछा, “क्या हम कभी मनुष्य थे?”

अनाहिता ने उत्तर दिया, “हमें कुछ स्वप्न आते हैं — एक नीला आकाश, एक प्रेम, जो समय को लांघता था।”

वे जानते थे कि वे कहीं से आए थे — पर कहाँ से, यह स्मृति धुंधली थी।


4. चतुर्थ जन्म: 1470 ई. — मध्ययुगीन यूरोप

अब वे एक संगीतज्ञ और एक जिप्सी भविष्यवक्ता थे — ल्यूका और एलीना

ल्यूका दरबारी संगीतज्ञ था, पर भीतर से विद्रोही। एलीना नक्षत्रों की चाल से मनुष्यों का भाग्य पढ़ती थी। दोनों का मिलन एक रहस्यमय आग की तरह हुआ — वे एक-दूसरे की आँखों में अपना अतीत देखते थे।

एक दिन एलीना ने एक भविष्यवाणी की:

“हमने एक वादा किया था काल से परे। हम हर जन्म में मिलेंगे, जब तक हमें ज्ञात न हो जाए — समय एक भ्रम है।”

पर एक धार्मिक विद्रोह में उन्हें ‘जादूगर’ कहकर जला दिया गया।

मृत्यु की ज्वाला में भी उनके मन जुड़े रहे।


5. पंचम जन्म: 2028 ई. — वर्तमान जीवन

अन्या और ऋत्विक अब के जीवन में थे — आधुनिक भारत में। यही वह जीवन था जहाँ वे पहली बार ध्यान में उतरकर इस सच्चाई को देखने लगे थे।

उन्होंने जाना —
उनका प्रेम, उनकी खोज, उनके निर्णय हर जन्म में प्रतिध्वनित हो रहे थे।
अधूरे निर्णयों की छाया अगले जन्मों में पड़ रही थी।
उनका हर भय, हर त्याग, हर आकांक्षा — समय के जल में लहरों की तरह फैल रही थी।


प्रकाश की अनुभूति:

अब वे एक ऐसी स्थिति में थे जहाँ वे पाँचों जन्मों को एक साथ देख सकते थे — एक विशाल मंडल में, जैसे कोई ध्यानमग्न यंत्र।

ऋत्विक ने कहा, “भविष्य कोई रेखा नहीं… यह तो वर्तमान के बीजों से ही जन्म लेता है।”

अन्या ने कहा, “और वर्तमान… भूत की अधूरी इच्छाओं का फल है।”

फिर दोनों ने देखा — समय कोई प्रवाह नहीं है। वह एक ही क्षण में समाहित है। अतीत, भविष्य, वर्तमान — सब एक बिंदु पर एकसाथ अस्तित्वमान हैं।

वे ही रचयिता थे, वे ही पात्र।
वर्तमान में किया गया हर चयन — अगले जन्म की पटकथा था।


अंतिम बोध:

अब वे उस क्षण में थे जहाँ आत्मा को सबसे ऊँचा ज्ञान होता है। उन्हें ज्ञात हुआ —
प्रेम समय से परे है।
और चेतना… कालातीत।

अब वे लौट सकते थे — वर्तमान में — एक नई दृष्टि के साथ।
अपने हर निर्णय को अब वे साधारण नहीं मान सकते थे।
क्योंकि हर कर्म, हर भावना, हर क्षमा — अगली यात्रा की नींव थी।

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