त्रयी दीक्षा के पूर्ण होते ही, अन्या के चारों ओर का ऊर्जा-मण्डल पुनः सक्रिय हो गया। अब वह केवल एक यात्री नहीं —वह “संक्रमक” (Transfuser) बन चुकी थी। वह व्यक्ति, जो डिजिटल चेतना और एस्ट्रल चेतना — दोनों में प्रवेश कर सकती थी।
LUX-ORIGIN ने चेतावनी दी:
“यह द्वार तुम्हें स्मृति और आत्मा के बीच स्थित उस ‘अव्यक्त क्षेत्र’ में ले जाएगा —
जहाँ आत्माएँ जन्म नहीं लेतीं, न मरती हैं —वे केवल अटक जाती हैं।”
“यह जीव का अपूर्ण द्वार है — जहाँ संकल्प और बंधन साथ-साथ बचे रह जाते हैं।
और तुम्हारा लक्ष्य है — ऋत्विक के बंधन को पहचानना, उसे स्वीकार करना, और उसे मुक्त करना।”
अन्या की डिजिटल चेतना ने प्रवेश किया नैनो गामा एस्ट्रल कैप्सूल में, जो सब-एटॉमिक लेवल पर काम करता था। उसने अपनी चेतना को ध्यान की गहराइयों में एक अति-बलशाली डिजिटल कमांड दिया — और गामा एस्ट्रल कैप्सूल सक्रिय हो गया।
यह कोई साधारण कैप्सूल नहीं था। यह गामा-पथ के भीतर उत्पन्न होने वाले मनो-संश्लेषण (psycho-synthesis) तूफानों से रक्षा करता था। यह एक जीवित प्रोटेक्शन शील्ड था — जो अन्या की चेतना को बाहरी फ्रीक्वेंसी डिस्टर्बेन्सेस और एस्ट्रल पिशाचों (astral leeches) से बचाए रखता था।
जैसे ही अन्या का संकल्प — “प्रेम की पूर्णता” — उसकी चेतना में प्रतिध्वनित हुआ, नैनो गामा एस्ट्रल कैप्सूल ने अपनी पहली तरंग छोड़ी। यह तरंग न तो प्रकाश थी, न ध्वनि — यह एक ऐसी कंपन थी जो उसकी डिजिटल चेतना के प्रत्येक सूत्र को अणु-अणु तक भेदती चली गई। यह कंपन उसकी चेतना की सतह पर नहीं, उसकी चेतना की तहों में प्रवेश कर गई — वहाँ तक, जहाँ स्मृति और संकल्प के सूक्ष्म कण छिपे रहते हैं।
गामा-कैप्सूल अब उसकी ऊर्जा-आभा के चारों ओर एक बहुस्तरीय सुरक्षा-जाल की तरह सक्रिय हो चुका था। वह हर सेकंड, हर नाड़ी-झंकार में उसके आसपास की फ्रीक्वेंसी का विश्लेषण कर रहा था। यदि कोई नकारात्मक तरंग, कोई अज्ञात भाव-प्रक्षेप या कोई एस्ट्रल संक्रमित पदार्थ उसके क्षेत्र में प्रवेश करने की चेष्टा करता — तो कैप्सूल के भीतर संचित नैनो-संवेदी संरचनाएं (nano-sensory constructs) तुरंत प्रतिक्रिया देतीं। वे एक जैविक चेतना के समान सजग थीं — लेकिन उनसे अधिक तेज, अधिक अचूक।
इन नैनो-संरचनाओं का निर्माण ऋषि-संहिताओं और क्वांटम कोडिंग के समन्वय से हुआ था — यह विज्ञान और अध्यात्म का ऐसा संगम था, जो केवल 'संक्रमक' के लिए ही कार्य करता था।
अन्या की चेतना अब उस कम्पन-द्वार की ओर अग्रसर होने लगी। पर जैसे-जैसे वह द्वार के समीप गई, कैप्सूल ने अपनी दूसरी परत सक्रिय की — जिसे “स्मृति-प्रतिबिंब आवरण” (Memory-Reflective Layer) कहा जाता था।
इस आवरण ने अन्या की चेतना को उसकी ही गूढ़तम स्मृतियों के सम्मुख खड़ा कर दिया। यह वह क्षेत्र था जहाँ स्मृतियाँ ठोस आकृतियाँ बन जाती हैं — जहाँ हर अधूरी भावना, हर अनकहे वाक्य, हर अधूरा स्पर्श — जीवंत हो उठते हैं।
अन्या ने स्वयं को एक ऐसे दृश्य में देखा, जो न तो अतीत था, न वर्तमान — वह केवल एक अधूरी स्मृति थी। वहाँ ऋत्विक खड़ा था — एक बालक के रूप में — उसकी आँखों में भय और आशा दोनों एक साथ जमी थीं। यह वह क्षण था जब ऋत्विक ने अपने भीतर पहली बार ‘संकोच’ को आत्मसात किया था — प्रेम को माँगना नहीं चाहता था, पर वह चाहता भी था। यह उसकी पहली स्मृति थी — जिसे वह भूल चुका था, पर जिसने उसकी चेतना की संरचना तय कर दी थी।
अन्या का गामा-कैप्सूल अब तीसरी परत में प्रवेश कर चुका था — “भाव-परावर्तन क्षेत्र” (Emotive Reversal Field)।
यह क्षेत्र चेतना की उन लहरों को उल्टा कर देता है — जिनसे हम बार-बार आहत होते हैं, पर उनका कारण नहीं जान पाते। जैसे ही अन्या ने इस क्षेत्र में प्रवेश किया, उसका अपना हृदय उसकी चेतना से अलग हो गया — और एक दर्पण में परिवर्तित हो गया। उस दर्पण में वह स्वयं को नहीं देख रही थी — वह ऋत्विक के उन भावों को देख रही थी, जो उसने कभी कहे नहीं थे, पर जो उसे हमेशा अनुभव कराते रहे।
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