Friday, December 13, 2024

तुमुल ये अज्ञान है

 

लोग ईश्वर का साक्ष्य मांगते है . ये सृष्टि हीं ईश्वर का सबुत है . यहाँ अगर दिन है तो राज भी . सुख है तो दुःख भी . अँधेरा है तो प्रकाश भी है . स्वार्थ है तो परमार्थ भी . अर्थात् इस जगत में जो कुछ भी है , वो अपनी विपरीतता मे मौजूद है . पूरा जगत द्वंद्व है , तो ईश्वर भी है जो निर्द्वंद्व है . अगर माया है तो सच भी है . अगर सृष्टि है तो स्रष्टा भी है . अगर दृष्टि है तो द्रष्टा भी . अगर जगत है तो ब्रह्म भी . ये जगत हीं ईश्वर का प्रमाण है . इस कविता में मैंने यही भाव प्रस्तुत किये हैं .

ज्यों जग में छिपा हुआ,तुमुल ये अज्ञान है,
त्यों तम का भेद जाने, ये मनुज विज्ञान है।
हृदय में संचार करता, भय है घन घोर भी,
त्यों तम को क्षीण करता, है सबेरा भोर भी।

ज्यों जगत में प्रेम भी है,चिर सुख की आस भी,
दुख की बदली छिपी है,घृणा , अविश्वास भी।
जब वीणा के तार रगड़े, सुर भी सानंद हो ,
बिन पीड़ा के कहो कैसे,कोई भी आनंद हो?

कदापि व्यतीत जीवन, चाह को तकते हुए,
पथिक को पथ मिले ना,राह को भटके हुए।
इस जगत में ज्यों है पर्वत, धीर से अड़े हुए,
त्यों हीं है विस्तृत सागर,भीर से पड़े हुए।

काली काली कोकिला हैं, फूल भी सफेद हैं,
नीर को तरसे मरु तो, जल बहाते मेघ है।
ज्यों सघन हो भाव मन में, सेवा और परमार्थ का,
त्यों हीं जानो हो आक्रमण,निर्दयी निज स्वार्थ का।

इस जगत में जो भी हैं,बस द्वंद्व से परिपूर्ण है,
गर जड़ है इस जगत में, वो भी है जो पूर्ण है।
द्वंद्व भी तो कुछ नहीं,कि मात्र एक अवरोध है,
छाया है निर्द्वंद्व निज का,निज से हीं विरोध है।

जब भी हो प्रकाश जग में, बनती और मिटती है छाया,
उस परम का साक्ष्य क्या दूँ ,साक्ष्य जग है, साक्ष्य माया।
चल रहा है ये जगत तो, वो भी जो अकाट्य हैं ,
मैं भी तू भी चर अचर भी,उस परम के साक्ष्य हैं।

 

No comments:

Post a Comment

My Blog List

Followers

Total Pageviews