दो हाथ आदमी के
अच्छे है बुरे हैं हालत आदमी के,
दिन रात पड़े पीछे हालात आदमी के।
लहरें बड़ी है ऊंची साहिल पे जा अड़ा ये,
ले रेत की ये मुठ्ठी क्या बात आदमी के।
मिट्टी से जो बना है मिट्टी में मिल जायेगा,
हवा में फिर उड़ेंगे जर्रात आदमी के।
रुखसत हुए तो जाना सब काम थे अधूरे,
क्या क्या करे जहां में दो हाथ आदमी के।
अजय अमिताभ सुमन
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