Tuesday, November 5, 2024

हे मित्र वर हे प्रिय वर कैसा ये आलाप?

हे मित्र वर , हे प्रिय वर,
कैसा ये आलाप?
मदिरालय से दूरी कैसी,
कैसा नया प्रलाप?

जो मधु सुख मिलता है तुमको,
मदिरा और मदिरालय में,
वो पुण्य क्या मिल सकता है ,
हरि नेह में, आलय में?

सुरापान था तुमको प्रियकर,
मदिरालय हीं तुझको ज्ञेय,
प्रभु राह से प्राप्त तुझे क्या,
जो किंचित तुझको अज्ञेय?

मेरे मित्र यूँ किंचित मुझपे ,
यूँ भी ना करो संदेह करो,
अष्टावक्र सा ना तू ज्ञानी,
और मैं ना विदेह अहो।

फिर भी मधुरालय का मैंने,
स्व ईक्छा परि त्याग किया,
ना कोई संताप है मन में,
ना कोई वैराग्य लिया।

मेरे धर्म में सूरा मना है,
ये मैंने सच में माना है,
भार्या की भी चाह यही थी,
उसे पूर्ण बस कर जाना है।

और मित्र न लूंगा मदिरा,
हेतु तुझे बताता हूँ,
अभी अभी तो पांच पैग ले,
मदिरालय से आता हूँ।

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