Monday, November 4, 2024

जालिम ये दीमक सारी मक्कार खा गई

गवाह सारे सच के, अखबार खा गई,
जालिम ये दीमक सारी, मक्कार खा गई।

बेईमानों के नमक का, कर्जा बहुत था भारी,
चटी थी फाइल सारी, गुनाहगार की बीमारी।
कि कुर्सी के काले चिट्ठे, किरदार खा गई,
जालिम ये दीमक सारी, मक्कार खा गई।

थी भूख की ये मारी, आदत की थी लाचारी,
दफ्तर के सारे सारे, दलालों से थी यारी।
सच के जो भी पड़े थे, चौकीदार खा गई,
जालिम ये दीमक सारी, मक्कार खा गई।

घिसे हुए थे चप्पल,लाचार की कहानी,
कि धूल में सने सब ,बेगार की जुबानी।
दफ्तर के हुए झूठे , करार खा गई ,
जालिम ये दीमक सारी, मक्कार खा गई।

खोखले थे कागज़, खोखली वो तहरीरें,
जो सच की भेंट चढ़ी, ये स्याह सी तक़दीरें।
खुद्दारों की दलीलें , गुनाहगार खा गई,
जालिम ये दीमक सारी, मक्कार खा गई।

तफसीस क्या करें सब, दफ्तर के भी अधिकारी,
दीमक से सौदा करते, दीमक बनी व्यापारी।
दफ्तर के काले कागज , व्यापार खा गई,
जालिम ये दीमक सारी, मक्कार खा गई।

गुनाह की कमाई, बाजार खा गई,
जालिम ये दीमक सारी, मक्कार खा गई।

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