विकट विघ्न जब भी आता ,या तो भय छा जाता है ,
या जो सुप्त रहा मानव में , ओज प्रबल आ जाता है।या तो भय से तप्त धूमिल , होने लगते मानव के स्वर ,
या तो थर्र थर्र कम्पित होने , लगते अरि के कुछ हैं नर।
सूरज भी है तथ्य सही पर तेरा भी सत्य सही,
दोष तेरेअवलोकन में अर्द्धमात्र हीं कथ्य सही।
आँख मूंदकर बैठे हो सत्य तेरा अँधियारा है ,
जरा खोलकर बाहर देखो आया नया सबेरा है।
इस सृष्टि में मिलता तुमको जैसा दृष्टिकोण तुम्हारा,
तुम हीं तेरा जीवन चुनते जैसा भी संसार तुम्हारा।
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