Tuesday, November 5, 2024

जब चुुभने लगती कानों को मस्ज़िद की नमाज़,

जब चुुभने लगती कानों को मस्ज़िद की नमाज़,
तब  उनको भी उकसाती  है घंटों की आवाज़।
बार  बार  तुम  ये  दुहराते , तैमूर, चंगेज खान,
याद तुम्हे फिर क्यों नहीं आते है अब्दुल कलाम।
माना सोमनाथ मंदिर को कभी गजनी ने फोड़ा था,
पर तुमको भी याद रहे मस्जिद तुमने भी फोड़ा था। 
औरंगजेब की गलती थी तुम मांग रहे  भुगतान,
वो जो चाय पिलाने वाले गांव के अहमद खान।
यदि  राम  को  रहता  याद  रावण का अभिमान,
कभी न कहते लक्ष्मण को, ले लो रावण से ज्ञान।
इसी तरह मंदिर मस्ज़िद पे लगती रही जो आग,
सोने की चिड़िया भारत कभी पूरे न होंगे ख्वाब।

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