एक गाँव में महात्मा पधारे। जैसे ही वे गाँव की सीमा पर पहुँचे, देखा कुछ बच्चे मैदान में खड़े हैं लेकिन खेल नहीं रहे। महात्मा ने मुस्कराते हुए पूछा,
"बच्चों, खेल क्यों नहीं रहे?"
एक छोटा बच्चा आगे बढ़ा और बोला,
"महात्मा जी, हमारी गेंद उस पीपल के पेड़ के नीचे चली गई है। वहाँ एक खतरनाक कुत्ता रहता है। जो भी वहाँ गया, वह काटा गया। हम डरते हैं।"
बच्चे उन्हें रोकते रहे, लेकिन महात्मा धीरे-धीरे पीपल के पेड़ की ओर बढ़े। झाड़ियों के बीच से वही कुत्ता निकला—बड़ा, भयंकर, लाल आँखों वाला। वह ज़ोर-ज़ोर से भौंकने लगा। लेकिन महात्मा शांत रहे, जैसे हवा में कोई हलचल ही न हो।
कुत्ता हैरान रह गया। कोई तो था जो उससे डर नहीं रहा था।
कुत्ते ने सिर झुका लिया और वचन दिया कि अब वह किसी को काटेगा नहीं।
दिन बीते, महीने गुज़रे। अब कुत्ता शांत हो गया था। वह न किसी को काटता, न भौंकता। गाँव वाले पहले तो चौंके, फिर उसके साथ निर्दयी व्यवहार करने लगे। बच्चे उसे पत्थर मारते, सुई चुभाते, लेकिन वह भाग जाता, कुछ कहता नहीं।
धीरे-धीरे उसका शरीर क्षीण हो गया, और वह एक गुफा में जाकर अकेला रहने लगा। उसका एक ही सपना रह गया था—महात्मा को एक बार फिर देखना।
महात्मा उसे खोजते हुए गुफा में पहुँचे। कुत्ता कमजोर और घायल था, लेकिन उन्हें देखकर उसकी आंखों में जीवन लौट आया।
कुत्ते की आंखों में एक नई चमक आ गई। अब उसने काटना नहीं सीखा, लेकिन भौंकना फिर से शुरू किया। अब कोई उसे तंग करने की हिम्मत नहीं करता।
हमें किसी को हानि नहीं पहुँचानी चाहिए। प्रेम और अहिंसा के मार्ग पर चलना चाहिए। लेकिन साथ ही, हमें अपनी रक्षा करना भी आना चाहिए। लोग हमें कमज़ोर न समझें, इसके लिए कभी-कभी हमें "भौंकना" भी आना चाहिए — बिना काटे। यह संतुलन ही सच्ची अहिंसा है।
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