Wednesday, July 9, 2025

भौकों , लेकिन काटो नहीं

एक गाँव में महात्मा पधारे। जैसे ही वे गाँव की सीमा पर पहुँचे, देखा कुछ बच्चे मैदान में खड़े हैं लेकिन खेल नहीं रहे। महात्मा ने मुस्कराते हुए पूछा,

"बच्चों, खेल क्यों नहीं रहे?"

एक छोटा बच्चा आगे बढ़ा और बोला,

"महात्मा जी, हमारी गेंद उस पीपल के पेड़ के नीचे चली गई है। वहाँ एक खतरनाक कुत्ता रहता है। जो भी वहाँ गया, वह काटा गया। हम डरते हैं।"

महात्मा ने कहा,
"ओह, डर ने तुम्हारे खेल को रोक दिया है? चलो, मैं देखता हूँ उस डर का क्या हाल है।"

बच्चे उन्हें रोकते रहे, लेकिन महात्मा धीरे-धीरे पीपल के पेड़ की ओर बढ़े। झाड़ियों के बीच से वही कुत्ता निकला—बड़ा, भयंकर, लाल आँखों वाला। वह ज़ोर-ज़ोर से भौंकने लगा। लेकिन महात्मा शांत रहे, जैसे हवा में कोई हलचल ही न हो।

कुत्ता हैरान रह गया। कोई तो था जो उससे डर नहीं रहा था।

कुत्ता धीमे स्वर में बोला,
"तुम मुझसे नहीं डरते?"

महात्मा ने मुस्कराकर उत्तर दिया,
"जो किसी को डराता नहीं, उसे डरने की आवश्यकता नहीं होती।"

कुत्ता थोड़ा भावुक हुआ।
"मैं भी अब थक चुका हूँ। सब मुझसे डरते हैं, और मैं सब से। यह जीवन व्यर्थ लगने लगा है। मुझे जीने की कोई राह बताइए।"

महात्मा ने कहा,
"डर से भरा जीवन, जीवन नहीं होता। अगर तुम सच में बदलना चाहते हो, तो किसी को नुकसान पहुँचाना बंद करो। प्रेम और अहिंसा से जियो।"

कुत्ते ने सिर झुका लिया और वचन दिया कि अब वह किसी को काटेगा नहीं।

दिन बीते, महीने गुज़रे। अब कुत्ता शांत हो गया था। वह न किसी को काटता, न भौंकता। गाँव वाले पहले तो चौंके, फिर उसके साथ निर्दयी व्यवहार करने लगे। बच्चे उसे पत्थर मारते, सुई चुभाते, लेकिन वह भाग जाता, कुछ कहता नहीं।

धीरे-धीरे उसका शरीर क्षीण हो गया, और वह एक गुफा में जाकर अकेला रहने लगा। उसका एक ही सपना रह गया था—महात्मा को एक बार फिर देखना।

उसकी प्रार्थना रंग लाई। एक दिन महात्मा फिर गाँव में आए। उन्होंने देखा कि अब वही बच्चे उस पीपल के पेड़ के नीचे खेल रहे हैं। पूछने पर बच्चों ने बताया,
"अब वो कुत्ता डरावना नहीं रहा। अब तो मरने की हालत में है, गुफा में पड़ा है।"

महात्मा उसे खोजते हुए गुफा में पहुँचे। कुत्ता कमजोर और घायल था, लेकिन उन्हें देखकर उसकी आंखों में जीवन लौट आया।

महात्मा ने पूछा,
"तुम्हारी यह हालत कैसे हुई?"

कुत्ता बोला,
"मैंने आपकी बात मानी। किसी को काटा नहीं, डराया भी नहीं। अब सब मुझे सताते हैं, मुझ पर हँसते हैं, चोट पहुँचाते हैं। पर मैं खुश हूँ कि मैं अहिंसक बना रहा।"

महात्मा की आँखें नम हो गईं। उन्होंने कहा,
"तुमने मेरी बात आधी समझी। मैंने तुम्हें काटने से मना किया था, लेकिन भौंकने से नहीं। अहिंसा का अर्थ यह नहीं कि तुम अपने बचाव का अधिकार खो दो।
जो बिना काटे भी भौंकना जानता है, वही सच्चा अहिंसक होता है।"

महात्मा ने आगे समझाया,
"कभी-कभी जीवन में ऐसा अभिनय भी ज़रूरी होता है, जिससे लोग यह जानें कि हम कमज़ोर नहीं हैं। प्रेम का यह मतलब नहीं कि तुम पीड़ित रहो। प्रेम के साथ विवेक भी ज़रूरी है।"

कुत्ते की आंखों में एक नई चमक आ गई। अब उसने काटना नहीं सीखा, लेकिन भौंकना फिर से शुरू किया। अब कोई उसे तंग करने की हिम्मत नहीं करता।



हमें किसी को हानि नहीं पहुँचानी चाहिए। प्रेम और अहिंसा के मार्ग पर चलना चाहिए। लेकिन साथ ही, हमें अपनी रक्षा करना भी आना चाहिए। लोग हमें कमज़ोर न समझें, इसके लिए कभी-कभी हमें "भौंकना" भी आना चाहिए — बिना काटे। यह संतुलन ही सच्ची अहिंसा है।

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