शहर के बीचोंबीच एक आलीशान इमारत थी — "अहंकार टावर्स"। इसके पेंटहाउस में रहते थे रविरंजन नारायण, जिन्हें सब रावण बाबू कहते थे। क्यों? क्योंकि वो दस चीज़ों में माहिर थे — कंपनी चलाना, भाषण देना, गूगल से भी तेज़ जवाब देना, और दूसरों की गलती पकड़ना। बस एक चीज़ में फेल थे — अपनी गलती मानना।
रावण बाबू कहते थे —
> "देखिए, मैं शिवभक्त हूँ, MBA हूँ, TED Talk दे चुका हूँ, और जो कहता हूँ वही कानून है।"
उनकी कंपनी में एक लड़की आई — सीता शर्मा। इंटर्न थी, लेकिन आँखों में आत्मसम्मान और आवाज़ में सच्चाई थी। रावण बाबू को ये दोनों चीज़ें बर्दाश्त नहीं थीं।
एक दिन उन्होंने अपने PA से कहा —
> "सीता को मेरे केबिन में बुलाओ, और कहो कि ये ‘मेंटॉरिंग सेशन’ है।"
PA ने कहा, "सर, ये ठीक नहीं लगेगा…"
रावण बाबू मुस्कराए —
> "ठीक लगेगा या नहीं, इसका फैसला CEO करता है, HR नहीं।"
और वहीं से शुरू हुआ उनका पतन — मगर उन्हें कुछ पता नहीं चला। जैसे हर तानाशाह सोचता है कि जनता चुप है, मतलब सब ठीक है। दरअसल जनता डरी हुई थी।
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इसी इमारत के तीसरे फ्लोर पर रहता था दीपक यादव, जिसे लोग दुर्योधन भैया के नाम से जानते थे। खुद को "जनता का नेता" मानता था, मगर असल में उसे जनता से एलर्जी थी।
वो न्यूज़ चैनलों पर जा-जाकर चिल्लाता —
> "मुझे नीचा दिखाने की साजिश हो रही है। औरतें सवाल न पूछें, साड़ी पहनें और चुप रहें।"
एक दिन एक पत्रकार — डॉली मिश्रा — ने उससे सवाल पूछ लिया,
> "आपने पंचायत के फंड से अपने फार्महाउस का स्वीमिंग पूल बनवाया है, क्या कहेंगे?"
दुर्योधन भैया तमतमाए, बोले —
> "देश खतरे में है! ये विदेशी विचारधारा है! राष्ट्रवाद को बदनाम किया जा रहा है!"
सभा ताली बजा रही थी। भीड़ में बुद्धि नहीं होती, बस तालियों की गूंज होती है।
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अहंकार टावर्स के बेसमेंट में था करणाल सिंह का सर्विलांस ऑफिस — जिसे लोग कंस साहब कहते थे। उसका मानना था कि उसके रिश्तेदार ही उसके पतन के ज़िम्मेदार हैं, इसलिए उसने सबका फोन टेप कर रखा था।
जब उसकी बहन ने बेटे का नाम कृष्ण रखा, तो वो चौंका —
> "अरे! यही तो मेरा काल है! इसको बचपन में ही निबटा देना चाहिए।"
उसने CCTV लगवाए, AI ट्रैकर रखवाए, और पूरे परिवार को एक डिजिटल जेल में डाल दिया।
पर एक दिन, उसका भांजा कृष्णा पांडे, जो इंस्टाग्राम पर मीम बनाता था, लाइव आ गया और कहने लगा —
> "कंस अंकल! आपसे बड़ा डरे हुए लोग और कोई नहीं। आपने डर को ही सत्ता बना लिया है।"
लोग हँसे, शेयर किया, और कंस साहब ट्रेंड करने लगे — पर ग़लत कारण से।
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पंचायत भवन के सामने रहता था बालीराम चौधरी, उर्फ़ बाली अंकल। ऊँची जात, तगड़ा शरीर, और मुँह में पान मसाला — गाँव पर राज करता था।
उसका भाई सुग्रीव बड़ा सरल था। पर बाली अंकल ने उसकी बीवी को कह दिया —
> "देखो बहनजी, ये तो नालायक है। तुम पंचायती कामों के लायक हो, मेरे साथ रहो।"
गाँव वालों ने गर्दन झुका ली। किसी ने कुछ नहीं कहा। बाली बाबू मुस्कराते रहे —
> "जब पब्लिक चुप हो जाए, तो समझो मैं सही हूँ।"
फिर आया राम शर्मा, RTI फाइलें लेकर। उसने घोटालों की सूची निकाली, बैंक स्टेटमेंट, दस्तख़तों की फोटो, सब कुछ उजागर कर दिया।
बाली अंकल बोले —
> "राम ने पीठ पीछे वार किया। धोखा है ये!"
(और फेसबुक पर स्टेटस डाला: #BackStabbedByBhakt)
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अब कहानी के चारों कोनों से शक्ति चिल्ला रही थी,
"हम सर्वोपरि हैं!"
पर सच्चाई धीरे-धीरे कदम रख रही थी…
एक दिन सबके दरवाजे पर दस्तक हुई —
– रावण बाबू की कंपनी पर यौन उत्पीड़न का केस,
– दुर्योधन भैया का चुनाव रद्द,
– कंस साहब के खिलाफ मानवाधिकार आयोग का नोटिस,
– बाली अंकल की सरपंची रद्द।
सबने कहा —
> "हमें बताया क्यों नहीं गया कि हम गलत कर रहे हैं?"
सीता ने उत्तर दिया —
> "कहा था, पर तब आपके इर्द-गिर्द लोग तालियाँ बजा रहे थे। आपको सच नहीं, सिर्फ चापलूसी सुनाई दे रही थी।"
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अंतिम दृश्य:
चारों शक्तिमान अब एक ही रिट्रीट सेंटर में बैठे थे, जिसे "गर्व मुक्ति केंद्र" कहते थे। सफेद कुर्ते में, सिर झुकाए, बगल में ‘How Not To Be A Dictator’ किताब रखी थी।
रावण बाबू बोले —
> "हम सब तो अपने आपको ही भगवान समझ बैठे थे…"
राम शर्मा, जो अब एक शिक्षक बन गया था, मुस्कुराकर बोला —
> "सत्ता जब विवेक को खा जाती है, तब आदमी को अपने पाप दिखते ही नहीं।
और जब दिखते हैं, तब तक वो Instagram पर वायरल हो चुके होते हैं… और कोर्ट में पेशी शुरू हो जाती है।"
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सीख:
इस कहानी से क्या सीख मिलती है?
शक्ति बुरी चीज़ नहीं है।
लेकिन जब शक्ति को कोई चुनौती न मिले, जब उसके चारों ओर सिर्फ हाँ में हाँ मिलाने वाले हों, जब कोई उसे "गलत" कहने की हिम्मत न करे —
तो वही शक्ति धीरे-धीरे एक आत्ममुग्ध राक्षस बन जाती है।
और फिर जब पाप का घड़ा फूटता है —
तो इंसान को अपनी आवाज़ सुनाई देती है, पर बहुत देर से।
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