एक शांत दोपहर थी। कोर्टरूम में पंखा पुरानी खटारा ट्रेन की तरह घूम रहा था, फाइलों में धीमे धीमे सरसराहट कि आवाज हो रही थी, और लोग नींद से जूझते हुए बैठे थे।
तभी...
जज साहब दोपहर का भोजन करके लौटे।
चेहरे पर वही गंभीरता, वही रोब। कुर्सी पर बैठे और गहरी आवाज़ में बोले,
"अगला मुकदमा बुलाओ।"
सभी लोग तुरंत अलर्ट हो गए, जैसे किसी ने कहा हो "मोदी आ रहे हैं!" कोर्टरूम में अचानक हलचल हुई।
एक दुबला-पतला, घबराया सा जूनियर वकील खड़ा हुआ। ऐसा लग रहा था जैसे फाइल के अंदर से भूत निकल आया हो और उसी को पकड़ लिया हो।
किसी को नहीं पता था, लेकिन कोर्ट में अब कॉमेडी का शो शुरू होने वाला था।
असल में, आज यह दूसरी बार था जब ये बेचारा जूनियर वकील समय माँग रहा था।
आज सुबह 11 बजे जब केस लगा तब भी वह उठा और बोला,
"माई लॉर्ड... मेरे सीनियर ट्रैफिक में फँस गए हैं। क्या हम केस 2 बजे ले सकते हैं?"
जज साहब ने मुस्कुराकर कहा,
"ठीक है , आ जाओ दो बजे।"
और अब दोपहर के ठीक 2 बजे थे। कोर्टरूम में सब बड़े उत्सुकता से बैठे थे, जैसे सबने छुपकर पॉपकॉर्न निकाल लिया हो – शो देखने को तैयार।
लेकिन... सीनियर वकील साहब अभी भी गायब थे !
जज साहब ने भौंहें चढ़ाकर पूछा,
"अब तुम्हारे सीनियर कहाँ हैं?"
जूनियर वकील का गला सुखा हुआ था , लड़खड़ाते हुए उसने कहा,
"माई लॉर्ड... अब वो एक और कोर्ट में फँस गए हैं।"
जज चौंके,
"पहले ट्रैफिक, अब दूसरा कोर्ट?"
वकील बोला,
"जी माई लॉर्ड, फिर से फँस गए।"
अब जज साहब थोड़ा पीछे झुके, हाथ जोड़कर बोले,
"ये कोर्ट है बेटा, रेलवे स्टेशन नहीं जो हर बार ट्रेन लेट हो रही है!"
पूरा कोर्ट हँसी से गूंज उठा।
जज ने फिर चुटकी ली,
"मैं तो लंच खाकर लौट आया... शायद तुम्हारे सीनियर डिनर पर निकल गए होंगे?"
हँसी का तूफ़ान और तेज़ हुआ।
फिर बोले,
"तो अब कब आएँगे तुम्हारे सीनियर साहब?"
जूनियर ने थोड़ा मुस्कराते हुए जवाब दिया,
"कल, माई लॉर्ड।"
जज बोले,
"किस समय?"
जवाब आया,
"दो बजे, माई लॉर्ड।"
अब जज साहब ने आँखें छोटी करके पूछा,
"और इस बात की क्या गारंटी है कि कल दो बजे आ ही जाएँगे?"
बेचारा जूनियर बोला,
"अगर नहीं आए... तो मैं गायब हो जाऊँगा, माई लॉर्ड!"
जज साहब: तो ध्यान रखना भाई , कहीं ये केस हीं गायब न हो जाए।"
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