दिन में दिखते रात हैं इनके,
ऑफिस से आघात हैं इनके।दफ्तर में आये हैं जबसे,
कुर्सी पर बैठे हैं तबसे।
बॉस मेल मीटिंग की मार,
क्लाइंट से तन हुआ बेजार।
एक खतम तब दुजा काम,
कुर्सी बोले करो आराम।
वर्कलोड का बोझ है भारी,
चाय भी ठंडी, कब पी सारी?
क्या हो सन्डे क्या हो मन्डे,
फन ना कोई सब हैं गन डे।
कहाँ भी जाएँ ये बेचारे,
वर्कलोड के रहते मारे।
फटे फटे जज्बात हैं इनके,
दिन में दिखते रात हैं इनके।
अजय अमिताभ सुमन
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