Friday, December 8, 2017

मन की चंचलता


एक बार की बात है , गौतम बुध्ह अपने शिष्यों के साथ कहीं जा रहे थे. रास्ते में उन्हें प्यास लगी . उन्होंने अपने एक शिष्य   से पानी लाने को कहा. रास्ते में एक पोखर मिला जिसमे कुछ  बच्चे खेल रहे थे . शिष्य के जाने पर बच्चे भाग गए . गौतम   बुध्ह  ने अपने एक शिष्य से पानी लाने को कहा जो पानी लाने को तत्पर हुआ . गौतम  बुध्ह ने उसे रोक दिया . थोड़ी देर बाद पानी की   गन्दगी बैठने लगी. शिष्य फिर पानी लाने को तत्पर हुआ. गौतम बुध्ह ने उसे फिर रोक दिया . काफी देर बाद पानी की   गन्दगी बिल्कुल बैठ गयी और पानी साफ़ हो गया . अब  गौतम बुध्ह ने अब अपने  शिष्य को पानी लाने को कहा और  बताया की हमारा मन भी उस पानी के उस पोखर के समान है जिसमे छोटी छोटी बातों से हलचल मच जाती. इसमें   स्थिरता     लाने का एक ही उपाय है इंतजार. समय के साथ मन में उठी  भावनाओं की लहर शांत हो  जाती है .  समय ही मन में उठी हर अस्थिरता को शांत कर देता है. मन की चंचलता का एक   ही उपाय है धीरज पूर्वक प्रतीक्षा. गौतम बुध्ह के शिष्य उनका आशय समझ चुके थे. गौतम बुध्ह का काफिला आगे बढ़  चला. 



अजय अमिताभ सुमन 

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