Wednesday, October 9, 2024

दो लॉयर गंभीर

 एक कोर्ट में देखा मैंने बड़ी हुई थी भीड़,

भिड़ने को तैयार थे बैठे दो लॉयर गंभीर।
बहस चली तो लड़ने बैठे वो दोनों अधिवक्ता,
अति अचंभित जज साहब थे क्या दोनों थे वक्ता।
सूझ रहा उपाय न कोई दोनों वक्ता वीर,
भिड़ने को तैयार थे बैठे दो लॉयर गंभीर।

बोले क्यों लड़ते हैं दोनों ऐसे भी क्यों ज्ञानी,
इतने भारी अधिवक्ता फिर कैसी ये नादानी।
बैठ भी जाएं दोनों भाई ले ले चाय की चुस्की,
इस सलाह पर एक वक्ता ने मारी थोड़ी मुस्की।
और चलाई निज जिह्वा से जहर बुझी सी तीर,
भिड़ने को तैयार थे बैठे दो लॉयर गंभीर।

कैसे पीऊं चाय मैं साहब मैं मॉडर्न वकील,
और चाय की चुस्की से वो आती ना है फील।
आती ना है फील ये सुनकर बोले दूजे वक्ता,
ना जाने ये कड़वी कौफी क्यों पीते अधिवक्ता।
इससे तो अच्छी है भाई मिठी सी हीं खीर,
भिड़ने को तैयार थे बैठे दो लॉयर गंभीर।

देख के दोनों को यूँ लड़ते जज भी हुए अधीर,
बंद करें भी बहस का मुद्दा गलती हुई गंभीर।
अगर न दोनों वक्ता साहब साथ ले सकते चाय।
दोनों पियें ठंडा पानी, यही बचा उपाय।
ये कोर्ट है फ़िर क्यों लड़ते कि जैसे कश्मीर,
भिड़ने को तैयार थे बैठे दो लॉयर गंभीर।

अजय अमिताभ सुमन

Friday, October 4, 2024

मद विष प्याला

 आज टूटी हुई जन्धा लेकर पछताता था मतवाला,

ज्ञात हुआ दुर्योधन को जो पीता था विष का हाला।
रक्त से लथपथ शैल गात व शोणित सिंचित काया,
कुरुक्षेत्र की धरती पर लेटा एक नर मुरझाया।
कौन जानता था जिसकी आज्ञा से शस्त्र उठाते थे ,
जब वो चाहे भीष्म द्रोण तरकस से वाण चलाते थे ।
इधर उधर हो जाता था जिसके कहने पर सिंहासन ,
जिसकी आज्ञा से लड़ने को आतुर रहता था दु:शासन।
सकल क्षेत्र ये भारत का जिसकी क़दमों में रहता था ,
धृतराष्ट्र का मात्र सहारा सौ भ्राता संग फलता था ।
क्या धर्म है क्या न्याय है सही गलत का ज्ञान नहीं,
जो चाहे वो करता था क्या नीतियुक्त था भान नहीं।
तन पे चोट लगी थी उसकी जंघा टूट पड़ी थी त्यूं ,
जैसे मृदु माटी की मटकी हो कोई फूट पड़ी थी ज्यूं।
कुछ और नहीं था हाँ वो था एक मद का हीं तो विष प्याला,
हाँ मद का हीं विष प्याला अबतक पीता मद विष प्याला।

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