Wednesday, October 30, 2024

तिनका तिनका सजा सजाकर



तिनका तिनका सजा सजाकर,

अवनि को महकाता कौन?

धारण करता जो सृष्टि को,

पर सृष्टि में रहता मौन।


कैसे वन वन उड़े कपोती?

अग्नि से निकले क्यों ज्योति? 

किस भांति बगिया में कलरव,

कोयल की गायन होती?


भिन्न भिन्न से रंग सजाकर ,

गुलों में रख आता है,

हर सावन में इन्द्रधनुष को ,

अम्बर में चमकाता कौन?


तिनका तिनका सजा सजाकर,

अवनि को महकाता कौन?

धारण करता जो सृष्टि को,

पर सृष्टि में रहता मौन।


अजय अमिताभ सुमन

Sunday, October 27, 2024

दो लॉयर गंभीर

 एक कोर्ट में देखा मैंने बड़ी हुई थी भीड़,

भिड़ने को तैयार थे बैठे दो लॉयर गंभीर।
बहस चली तो लड़ने बैठे वो दोनों अधिवक्ता,
अति अचंभित जज साहब थे क्या दोनों थे वक्ता।
सूझ रहा उपाय न कोई दोनों वक्ता वीर,
भिड़ने को तैयार थे बैठे दो लॉयर गंभीर।

बोले क्यों लड़ते हैं दोनों ऐसे भी क्यों ज्ञानी,
इतने भारी अधिवक्ता फिर कैसी ये नादानी।
बैठ भी जाएं दोनों भाई ले ले चाय की चुस्की,
इस सलाह पर एक वक्ता ने मारी थोड़ी मुस्की।
और चलाई निज जिह्वा से जहर बुझी सी तीर,
भिड़ने को तैयार थे बैठे दो लॉयर गंभीर।

कैसे पीऊं चाय मैं साहब मैं मॉडर्न वकील,
और चाय की चुस्की से वो आती ना है फील।
आती ना है फील ये सुनकर बोले दूजे वक्ता,
ना जाने ये कड़वी कौफी क्यों पीते अधिवक्ता।
इससे तो अच्छी है भाई मिठी सी हीं खीर,
भिड़ने को तैयार थे बैठे दो लॉयर गंभीर।

देख के दोनों को यूँ लड़ते जज भी हुए अधीर,
बंद करें भी बहस का मुद्दा गलती हुई गंभीर।
अगर न दोनों वक्ता साहब साथ ले सकते चाय।
दोनों पियें ठंडा पानी, यही बचा उपाय।
ये कोर्ट है फ़िर क्यों लड़ते कि जैसे कश्मीर,
भिड़ने को तैयार थे बैठे दो लॉयर गंभीर।

अजय अमिताभ सुमन

Friday, October 25, 2024

वेदना

इस जगत में वेदना का, 

दरअसल निदान क्या हो? 

कष्ट पीड़ा से हो मुक्ति,

वेदना परित्राण क्या हो। 

शक्ति संचय से अगर हीं, 

वेदना परित्याग त्याग हो तो, 

पद प्रतिष्ठा से अगर, 

संवेदना परित्याग हो तो। 

जग को जीता हुआ, 

जग त्याग बिन बोले हुए। 

क्यों सिकंदर जा रहा था, 

हाथ को खोले हुए।

हिम शिखर सी भी ऊंचाई, 

प्राप्त कर निर्मुक्त हो,

क्या तुझे दृष्टति है मानव, 

जो पीड़ा से मुक्त हो?

शक्ति संचय से कदाचित, 

नर की चाहत बढ़ हीं जाती,

पद प्रतिष्ठा मान शक्ति ,

नर के सर में चढ़ ही जाती।

किंतु हासिल सुख हो अक्षय,

धन आदि परिमाण क्या हो?

इस जगत में वेदना का ,

दरअसल निदान क्या हो?

Tuesday, October 22, 2024

कुदरत तेरा करतब देखा

 कुदरत तेरा करतब देखा,

एक बीज में बरगद देखा।

रोज रोज ये सूरज कैसे,
पूरब से उग जाता है।
सुबह गुलाबी दिन मे तपता,
शाम को ये डूब जाता है।
रात को कैसे जा छिपता है,
अनजाने ये सरहद देखा,
कुदरत तेरा करतब देखा,
एक बीज में बरगद देखा।

पानी में मछली रहती क्यों?
पर चिड़िया इसमें मरती क्यों?
सर्प सरकता रेंग रेंग कर,
छिपकीली छत पे चढ़ती क्यों?
कोयल कूके बाग में आके,
मकसद क्या अनजाने देखा।
कुदरत तेरा करतब देखा,
एक बीज में बरगद देखा।

नाजाने क्या मकसद देखा,
एक बीज में बरगद देखा।

अजय अमिताभ सुमन

Wednesday, October 16, 2024

लायर विग

 गर माथे लायर विग होती,सोचो शामत होती कैसी?

भरी भरी सी इस गर्मी में,उमस में आफत नर्मी में।

पसीना तर तर कर आता,क्या लायर सबमिट कर पाता।

गर्दन पे हो लॉयर बैंड ,लॉयर की बजाते बैंड।

गर्मी का मौसम जब आए,सूझे ना फिर कोई उपाय।

माथे विग और चढ़ा हो कोट,क्या लॉयर को मिलेगी ओट।

ये तो अच्छी बात हुई है,सर पे विग ना चढ़ी हुई है।

जो कुछ भी लगते बचकाने,क्यों अंग्रेजी बात हम माने?


अजय अमिताभ सुमन 

Friday, October 4, 2024

मद विष प्याला

 आज टूटी हुई जन्धा लेकर पछताता था मतवाला,

ज्ञात हुआ दुर्योधन को जो पीता था विष का हाला।
रक्त से लथपथ शैल गात व शोणित सिंचित काया,
कुरुक्षेत्र की धरती पर लेटा एक नर मुरझाया।
कौन जानता था जिसकी आज्ञा से शस्त्र उठाते थे ,
जब वो चाहे भीष्म द्रोण तरकस से वाण चलाते थे ।
इधर उधर हो जाता था जिसके कहने पर सिंहासन ,
जिसकी आज्ञा से लड़ने को आतुर रहता था दु:शासन।
सकल क्षेत्र ये भारत का जिसकी क़दमों में रहता था ,
धृतराष्ट्र का मात्र सहारा सौ भ्राता संग फलता था ।
क्या धर्म है क्या न्याय है सही गलत का ज्ञान नहीं,
जो चाहे वो करता था क्या नीतियुक्त था भान नहीं।
तन पे चोट लगी थी उसकी जंघा टूट पड़ी थी त्यूं ,
जैसे मृदु माटी की मटकी हो कोई फूट पड़ी थी ज्यूं।
कुछ और नहीं था हाँ वो था एक मद का हीं तो विष प्याला,
हाँ मद का हीं विष प्याला अबतक पीता मद विष प्याला।

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